Sunday, June 26, 2016

हिन्दू समाज की लडकियाँ ही सबसे अधिक लव जिहाद की शिकार क्यों बनती है ?


हिन्दू समाज की लडकियाँ ही सबसे अधिक लव जिहाद की शिकार क्यों बनती है ? 
भारत स्वाभिमान दल 

एक प्रश्न अनेक पाठकों के मन में उठ रहा होगा कि हिन्दू समाज की लडकियाँ ही सबसे अधिक क्यूँ लव जिहाद का शिकार बनती हैं? 
 
1. क्यूंकि न तो हिन्दू समाज अपनी संतानों को धार्मिक शिक्षा देते है। 
 
2. क्यूंकि न ही हिन्दू समाज सनातन वैदिक धर्म की श्रेष्ठता और अवैदिक मतों पंथों की निकृष्टता से अपनी संतानों को अवगत करवाते है। 
 
3. क्यूंकि न ही हिन्दू समाज अपने घरों में धार्मिक माहौल रखता है? 
 
4. बॉलीवुड की अश्लील फिल्में एवं साँस बहु के लड़ने वाले सीरियल से परिवार का वातावरण अधिक दूषित है। 

 5. राष्ट्रीय सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर परिवार के सदस्यों में परस्पर वार्तालाप की कमी होने से परिवार के सदस्यों के चिंतन की दिशा एक नहीं है। 

6. हिन्दू समाज में केवल पैसा जोड़ना धार्मिक होने से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। 

7. हिन्दू समाज अपनी संतानों को हमारे महान इतिहास, वीर पुरुषों, उनके तप और बलिदान की कहानियों से प्राय: अनभिज्ञ रखना। 

8. धर्म के नाम पर भोझिल और उबाऊ अन्धविश्वास रुपी कर्म कांड को अधिक महत्व देना एक प्रमुख कारण है। 

9. हिन्दू समाज अपनी वृद्धि के विषय में कभी नहीं सोचता। 

10.हिन्दू समाज अपने धर्मरक्षकों का सहयोग करने के स्थान पर उनका विरोध करना धार्मिक कर्त्तव्य समझता है। 

हम पाठकों से बहुत बार अनुरोध कर चुके है कि वे अपने परिवार के सदस्यों को धर्म शिक्षा दे, इसके लिए हमने सनातन संस्कृति संघ के माध्यम से धर्म शिक्षा की पीडीएफ पुस्तक भी तैयार कर दी, लेकिन कुछ जागरूक व्यक्तियों को छोड़ दे तो अधिकांश हिन्दुओं की दृष्टि में आज भी धर्म शिक्षा का कोई महत्व नहीं है ?
 - विश्वजीत सिंह अनन्त 
 राष्ट्रीय अध्यक्ष 
भारत स्वाभिमान दल 

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साई को बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है ?


हिन्दुत्व को कमजोर करने के लिए साईं को बढावा यह इतना क्लिष्ट है कि यह सामान्य हिन्दू जल्दी समझ नही पाएगा 1992 के बाबरी विध्वंस ने पूरी दुनिया को झकझोर कर यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर हिन्दू अपने पर आता है तो वह कुछ भी कर सकता है तब कुछ मुस्लिम संगठनो ने हिन्दुत्व को कमजोर करने के लिए एक बहुत ही गहरी साजिश के तहत हिन्दुओ के एक और राम जिसे कुछ मुर्ख हिन्दू साईं राम कहते है अवतरित किया अब आपको बताते है कि यह संभव कैसे हुआ यह तो आप भी जानते होंगे कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री दाउद इब्राहिम और अबू सलेम के इशारे पर चलती थी उसी फिल्म इंडस्ट्री के सहयोग से साईं बाबा को साई राम बनाने का घृणित खेल शुरू हुआ अब आप लोग स्वयं ही सोच कर बताइए क्या 1992 के पहले भी आप लोगो ने कभी साईं राम लिखा देखा है इस पर आप गहन अध्ययन करके बता सकते है 1992 के पहले आप एक भी जगह साईं राम लिखा नही दिखा सकते 1992 तक साईं केवल एक बाबा थे 1992 के बाद साईं बाबा का साईं राम के रूप में प्रकट होना हिन्दुत्व के लिए खतरे की घंटी है इसलिए जागो हिन्दू जागो और साईं जैसे पाखण्डी को अपने भगवान श्री राम के बराबर मत खडा करो वर्ना वह दिन दूर नहीँ जब यह प्रचारित किया जाएगा कि साईं राम कहते थे मेरे लिए मन्दिर मस्जिद बराबर है इसलिए अयोध्या में बाबरी मस्जिद ही ठीक है वाराणसी मे ज्ञानव्यापी मस्जिद ही ठीक है !
-विश्वजीत सिंह अनन्त
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हव्सी दरिंदा था अकबर


अकबर की महानता का गुणगान तो कई इतिहासकारों ने किया है लेकिन अकबर की औछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने किया है अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज का मेला आयोजित करवाता था जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती थी उसे दासियाँ छल कपटवश अकबर के सम्मुख ले जाती थी एक दिन नौरोज के मेले में महाराणा प्रताप की भतीजी छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर काबू नही रख पाया और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से जनाना महल में बुला लिया जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटकर छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी और कहा नींच... नराधम तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हुं जिनके नाम से तुझे नींद नहीं आती है बोल तेरी आखिरी इच्छा क्या है अकबर का खुन सुख गया कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा अकबर बोला मुझे पहचानने में भूल हो गई मुझे माफ कर दो देवी तो किरण देवी ने कहा कि आज के बाद दिल्ली में नौरोज का मेला नहीं लगेगा और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो मे 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग मे भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है किरण सिंहणी सी चढी उर पर खींच कटार भीख मांगता प्राण की अकबर हाथ पसार धन्य है किरण बाईसा उनकी वीरता को कोटिशः प्रणाम !
 -विश्वजीत सिंह अनन्त
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स्वयं को आर्य कहलाते थे गौतम बुद्ध


आर्यो को विदेशी कहने वालो महात्मा बुद्ध ने तो स्वयं को आर्य जाती में उत्पन्न बताया है , तो फिर उनका देशीकरण कैसे हो गया ? अब वही रटा रटाया हुआ वाक्य मत बोलना कि ये भी ब्राम्हणों ने ही लिखा है - ययोहं भगिनि! अरियाय जातिया जातो, नाभिजानामि सच्चिच्च पाण जीविता वोरोपेता। तेन सच्चेन सोत्थि ते होतु सोत्थि गबभस्साती। दैनिक सुत्तपठन / पृष्ट स. 134 अर्थात - बुद्ध ने कहा ,.... बहिन ! जब से मैने आर्य जाति में जन्म लिया है तब से मैं जानबूझकर जीव् हिंसा करने की बात नही जनता । उस सत्य वचन से तेरा कल्याण हो और तेरे गर्भ का भी कल्याण हो ।' मित्रो प्रस्तुत प्रसंग दैनिक सुत्तपठन नामक पुस्तक के अंगुलिमाल परित् से लिया गया है जिसके लेखक डा. भदन्त ज्ञानरत्न महाथेरो जी है। इस सन्दर्भ में एक कथा श्रवण कीजिये एक बार जब भंते अंगुलिमाल प्रातः सामान्य पिण्डपात ( भिक्षाटन के लिए जा रहे थे तो एक गांव में उन्हों ने एक घर से प्रसव पीड़ा से पीड़ित एक महिला की चीत्कार सुनी उसकी पीड़ा से उनका मन उद्वेलित हो उठा और वो भागे भागे बुद्ध की सरन में गए और सारा वृतांत कह सुनाया और उक्त महिला को प्रसव वेदना से मुक्त कराने का भगवान् बुद्ध से विनय किया । तब भगवान बुद्ध ने उन्हें तुरंत अपने धम्म सन्देश के साथ महिला के घर जाने को कहा और अपने धम्म बल के सत्य प्रभाव से उस महिला को प्रसव वेदना से मुक्ति दिलाने का अश्वासन दिया - जिसके फल स्वरूप उक्त महिला ने सामान्य प्रसव किया। तभी से बौद्ध धम्म में इस सूत का पाठ सामान्य पीड़ा रहित प्रसव के लिए तैयार महिलाओ की पीड़ा को दूर करने के निमित्त किया जाने लगा। उपरोक्त प्रसंग के साथ मुझे अपनी बात रखने की आवश्यकता इस लिए भी पड़ी की आज कल के तथाकथित मूलनिवासी नवबोद्ध टाइप लोगो ने समाज में व्यभिचार और दुष्प्रचार की गन्दगी मचा रक्खी है बिना बुद्ध को जाने समझे उनके संदेशो का अध्ययन किये मेंढक की तरह टर्र टर्र करते हुवे स्वयं को बौद्ध और बुद्ध के संदेशो का वाहक कहते हुवे छाती फुलाते है। इसी क्रम में इन्होंने समाज में दो दुष्प्रचार बड़ी तेजी से फैलाये की आर्य एक जाती थी और वो यूरेशिया से आये थे । अक्ल से पैदलो आर्य कोई जाति नहीं बल्कि श्रेष्ठ मनुष्य को आर्य कहा जाता था । गधो अंग्रेजो के लिखे इतिहास की लीद ही ढोते रहोगे क्या ?
-विश्वजीत सिंह अनन्त
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