वो कैराना से भागे हुए हिंदुओं पर कुछ नहीं बोले.
वो बुलंदशहर में दरिंदगी की शिकार हुई बिटिया पर भी नहीं बोले.
केरल और बंगाल में मारे गए सैकड़ों स्वयंसेवकों पर उनकी चुप्पी नहीं टूटी.
जब मालदा में लाखों दरिंदे शासन व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ा रहे थे, शासन को चुनौती देकर एक आदमी के खून के प्यासे हो रहे थे तो उन्हें बोलना जरूरी नहीं लगा.
जब उनकी सत्ता की नाक के नीचे, उनकी दिल्ली में एक यूनिवर्सिटी में खुले आम देश के टुकड़े करने के नारे लग रहे थे तो उन्हें कुछ बोलना नहीं सूझा.
जब एक स्टूडियो में बैठ कर एक दलाल पत्रकार एक आतंकी को शहीद बताता है तो क्या बोलना है उन्हें पता नहीं.
आज तक पकिस्तान के पैसे से पलने वाले देशद्रोही पत्रकारों का डोसियर नहीं बना पाए.
जब एक पत्रकार खुलेआम घर घर जाकर लोगों की जाति पूछकर जातिवाद फैलाता है तो उन्हें यह कुछ बोलने लायक बात नहीं लगती.
जब ओबामा उनकी बगल में बैठ कर देश को जातिगत आधार पर टुकड़े टुकड़े करने की धमकी देकर जाता है तो वहाँ कुछ बोलने की उनकी औकात है भी नहीं...पर जब उसकी शह पर और उसके इशारे पर पूरे देश में एकाएक असहिष्णुता का बीन बजने लगता है तो किसे क्या बोलें उन्हें पता नहीं लगता.
रोज हमारे दल्ले पत्रकार एक के बाद एक झूठ बोल कर समाज में जातिवाद का ज़हर फैला रहे हैं...उन्हें इस पर कुछ नहीं बोलना...
राष्ट्र के नाम खुले मंच से उन्हें बोलना जरूरी हो जाता है कि कहीं किसी ने कोई गुंडागर्दी की ... वो सारे गोरक्षक थे...
जब किसी चर्च पर कोई एक पत्थर फेंक देता है तो वे बोलते हैं कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा...
हिन्दुओं का धर्मान्तरण कितना भी हो, लेकिन यदि किसी गैर हिन्दू का शुद्धिकरण कर घर वापसी कराई तो खबरदार...
वे ट्विटर से देश को खुशखबरी देते हैं कि किस पादरी को अफगानिस्तान से बचा लिया गया...
उन्हें बोलना जरूरी हो जाता है कि रोहित वेमुला देशभक्त था...
आप बैकफुट पर हो. आप पर प्रेशर है बौद्ध+मुस्लिम वोट छींटकने का...आप पर प्रेशर है कम्युनल कहलाने का...आप पर प्रेशर है कि विदेशी इन्वेस्टर नहीं आएंगे. पर ये झूठ फैला कर आप पर यह प्रेशर बना कौन रहा है ?
मीडिया...जिसपर कोई एक्शन लेने का आपमें गूदा नहीं है. आपमें रविश से यह सवाल पूछने की हिम्मत नहीं है कि वह किस हक़ से एक आतंकवादी के पक्ष में प्राइम टाइम करता है. बरखा से यह पूछने की हिम्मत नहीं है कि वह कश्मीर के मुद्दे पर पकिस्तान की भाषा किस हक़ से बोलती है.
किसी ने की होगी कहीं गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी. पर आपमें हिम्मत है तो गोवध रुकवा कर उनकी दुकान बंद करवा दें. गायें प्लास्टिक खाकर मरती हैं...लगा दीजिये प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध.
आप किस विषय पर मुंह खोलते हैं और कब चुप्पी साध लेते हैं, यह पैटर्न बहुत साफ़ है. आप वहां बोलते हो जहाँ कोई हिन्दू संगठन निशाने पर होता है. पर जब इस्लामिक आतंक के पैरोकारों के खिलाफ बोलने का वक़्त आता है, जब देश को तोड़ने की कोशिश में लगे गद्दारों के खिलाफ बोलने का वक़्त आता है तो आपकी बोलती बंद हो जाती है. भीतर ही भीतर आप उन्ही मीडिया वालों से अप्रूवल लेने के लिए बोलते हो, जो देश तोड़ने वालों के साथ खड़े हैं.
आप पर तरस आता है साहब...!!!
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जब उनकी सत्ता की नाक के नीचे, उनकी दिल्ली में एक यूनिवर्सिटी में खुले आम देश के टुकड़े करने के नारे लग रहे थे तो उन्हें कुछ बोलना नहीं सूझा.
जब एक स्टूडियो में बैठ कर एक दलाल पत्रकार एक आतंकी को शहीद बताता है तो क्या बोलना है उन्हें पता नहीं.
आज तक पकिस्तान के पैसे से पलने वाले देशद्रोही पत्रकारों का डोसियर नहीं बना पाए.
जब एक पत्रकार खुलेआम घर घर जाकर लोगों की जाति पूछकर जातिवाद फैलाता है तो उन्हें यह कुछ बोलने लायक बात नहीं लगती.
जब ओबामा उनकी बगल में बैठ कर देश को जातिगत आधार पर टुकड़े टुकड़े करने की धमकी देकर जाता है तो वहाँ कुछ बोलने की उनकी औकात है भी नहीं...पर जब उसकी शह पर और उसके इशारे पर पूरे देश में एकाएक असहिष्णुता का बीन बजने लगता है तो किसे क्या बोलें उन्हें पता नहीं लगता.
रोज हमारे दल्ले पत्रकार एक के बाद एक झूठ बोल कर समाज में जातिवाद का ज़हर फैला रहे हैं...उन्हें इस पर कुछ नहीं बोलना...
राष्ट्र के नाम खुले मंच से उन्हें बोलना जरूरी हो जाता है कि कहीं किसी ने कोई गुंडागर्दी की ... वो सारे गोरक्षक थे...
जब किसी चर्च पर कोई एक पत्थर फेंक देता है तो वे बोलते हैं कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा...
हिन्दुओं का धर्मान्तरण कितना भी हो, लेकिन यदि किसी गैर हिन्दू का शुद्धिकरण कर घर वापसी कराई तो खबरदार...
वे ट्विटर से देश को खुशखबरी देते हैं कि किस पादरी को अफगानिस्तान से बचा लिया गया...
उन्हें बोलना जरूरी हो जाता है कि रोहित वेमुला देशभक्त था...
आप बैकफुट पर हो. आप पर प्रेशर है बौद्ध+मुस्लिम वोट छींटकने का...आप पर प्रेशर है कम्युनल कहलाने का...आप पर प्रेशर है कि विदेशी इन्वेस्टर नहीं आएंगे. पर ये झूठ फैला कर आप पर यह प्रेशर बना कौन रहा है ?
मीडिया...जिसपर कोई एक्शन लेने का आपमें गूदा नहीं है. आपमें रविश से यह सवाल पूछने की हिम्मत नहीं है कि वह किस हक़ से एक आतंकवादी के पक्ष में प्राइम टाइम करता है. बरखा से यह पूछने की हिम्मत नहीं है कि वह कश्मीर के मुद्दे पर पकिस्तान की भाषा किस हक़ से बोलती है.
किसी ने की होगी कहीं गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी. पर आपमें हिम्मत है तो गोवध रुकवा कर उनकी दुकान बंद करवा दें. गायें प्लास्टिक खाकर मरती हैं...लगा दीजिये प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध.
आप किस विषय पर मुंह खोलते हैं और कब चुप्पी साध लेते हैं, यह पैटर्न बहुत साफ़ है. आप वहां बोलते हो जहाँ कोई हिन्दू संगठन निशाने पर होता है. पर जब इस्लामिक आतंक के पैरोकारों के खिलाफ बोलने का वक़्त आता है, जब देश को तोड़ने की कोशिश में लगे गद्दारों के खिलाफ बोलने का वक़्त आता है तो आपकी बोलती बंद हो जाती है. भीतर ही भीतर आप उन्ही मीडिया वालों से अप्रूवल लेने के लिए बोलते हो, जो देश तोड़ने वालों के साथ खड़े हैं.
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