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Monday, August 17, 2015
कृषि व्यवस्था का स्वदेशीकरण
कृषि व्यवस्था का स्वदेशीकरण
भारतीय खेती१) भारतीय ग्राम समाज में मिलने वाले गोबर, गौमूत्र और अन्य जैविक पदार्थो से सेंद्रीय खाद बनाना चाहिए
फर्टिलाइजर के कारखानों को जो सहूलियत व सबसिडी मिलती है, वह बंद होनी चाहिए । पिछ्ले पचास सालों में रासानिक फर्टिलाइजर को प्रोत्साहित करके सरकार ने भारत की खेती का भारी नुकसान किया है । हमें इस बात का पूरा अनुभव मिल चुका है कि रासायनिक खाद आगे चलकर लंबे समय के लिए नुकसानदेह है और ये जमीन की उर्वरता को खत्म कर देते है । इसलिए ज्यादा खाद डालते हुए भी प्रति एकड़ उत्पादन कम हो रहा है । इसके बदले हमारा गोबर खाद, सेंद्रीय खाद उत्तम है, यह साबित हो चुका है । इसलिए रासायनिक खादों को किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए और सेंद्रीय खाद को तमाम प्रकार के प्रोत्साहन मिलने चाहिए । ताजातरीन शोधों के मुताबिक एक किलो गोबर में से ३० से ३५ किलो जितना ही गुणकारी सेंद्रीय खाद बन सकता है । इस तरह तमाम ग्रामवासियों को अवकाश के समय में सेंद्रीय खाद बनाने में लगाया जाए तो भारत में सेंद्रीय खाद से अत्यंत उपयोगी व समृद्ध हो सकती है । साथ ही इससे जमीन की उर्वरता भी खूब बड़ जायेगी और प्रति एकड़ उत्पादन पूरे विश्व में हम उच्चतम ले सकते है । इतनी बड़ी संभावना हमारे देश में है परंतु उसका उपयोग किया नहीं जाता। ऐसा करने के लिए रासायनिक खाद के ऊपर प्रतिबंध होना चाहिए और एक किलो गोबर से ३० किलो सेंद्रिय खाद बनाने की पध्दति का खूब जोर - शोर से गांव में प्रचार करके ऐसी खाद करोड़ों और अरबों टन बनाने की व्यवस्था करना जरुरी है ।
२) भारतीय ग्राम्य समाज में उपलब्ध गौमूत्र, नीम और दूसरी वनस्पतियों का उपयोग करके कुदरती कीटनाशक दवाएं बनाना और वही खेत में उपयोग करना तथा पेस्टीसाइड्स के कारखाने पर प्रतिबंध
आधुनिक खेती में रासायनिक कीट्नाश्कों ने खेती का सत्यानाश कर रखा है । अभी भारत में हर साल २० हजार करोड़ रु. की कीट्नाशक दवएं किसान उपयोग करता है । यानी किसानों के घरों में से बेशकीमती २० हजार करोड़ रु. के कीटनाशकों के रुप मे चले जाते है । इसलिए किसान बदहाल हो जाता है और बहुत सारे किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती है । रासायनिक दवाओं के कारण जमीन का नाश होता है सो अलग और उत्पादन भी कम होता है । कीटनाशक दवाओं बाला खाद्य पदार्थ खाने से तमाम लोगों को कैंसर जैसी बीमारी भी हो जाती है । इसलिए दवाओं में और डाक्टरों पर काफी पैसे खर्च हो जाते है । इस प्रकार के दुश्चक्र में भारत के किसान और भारत की जनता फंस गयी है । कृषि व्यवस्था के स्वदेशीकरण से इस जहरचक्र को तोड़ डालना चाहयें । यह कार्य सचमुच कठिन नहीं है, क्योकि महंगे रासायनिक कीटनाशक दवाओं के बदले स्थानीय बनस्पतियों से घर में कीटनाशक दवाएं बिल्कुल मुफ्त में बना लेना सरल है और हर किसान बहुत कम खर्च में यह कर सकता है । बनस्पतियों से घर में बनने वाली कीटनाशक दवाएं किसानों द्वारा खुद बनाने के तरीके का प्रचार होना चाहिए । यह बहुत जरुरी है । ऐसा हो तो किसान ऐसी दवाएं खुद बनाकर लाखों करोड़ों रुपयों के शोषण से बच सकते है । अपनी खेती की जमीन को खराब होने से बचा सकते है और जनता को कीटनाशक वाली सब्जी, भाजी, अनाज, फल, दलहन से जो कैंसर होता है, उससे बचा सकते है ।
३) पहाड़ों में से मिलने वाले पत्थर तथा अन्य स्थानों से मिलने वाली प्राकृतिक मिट्टी में जो खनिज तत्व है उनका उपयोग कृषि में होना चाहिएं
४) खेती के काम में जरुरी साधन-उपकरण आदि बनाने के लिए लोहार, बढाई वगैरह लोगों को प्रोत्साहन मिले ऐसी नीति
५) भारतीय कृषि परंपराओं में उपयोगी हो ऐसे बीज का संरक्षण और पुनर्गठन
बीज को पवित्र वस्तु मानने की परंपरा भारत में थी । उसकी खरीद-बिक्री नहीं होती थी । मित्र परिवार और सगे- संबंधी से लेन-देन करके आवश्यकताओं की पूर्ति होती थी । अक्सर किसान अपना बीज स्वयम् चुन-चुन कर रखते थे ।
१९६० से हरित क्रांति के दौर में जहां पहले भारत में ४० हजार धान की, चार हजार गेहूं की, एक हजार आम की किस्में थी वे अब बहुराष्टीय कंपनियों को तरजीह देने कारण एक दर्ज तक सिमट गई है । इसलियें हमें अपने पारम्परिक बीजों की सुरक्षा और उत्पादन करने ही होगें ।
६) देशी बीज मिलें ऐसे २५-५० गांवों के समूह में बीज का उत्पादन व वितरण की सुविधा ।
७) खेती का पारंपरिक ज्ञान जो भारतीय किसानों को है, उसका संकलन और प्रचार तथा भारतीय भाषाओं में प्रकाशन ।
विश्वजीत सिंह अनन्त
राष्ट्रीय अध्यक्ष
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