जब से सृष्टि बनी है तभी से मानव जाति में हर काल और हर युग में युद्ध होते आये हैं जिन्हें कोई नहीं रोक पाया है| भारत में युद्ध करने के लिए एक पृथक क्षत्रिय वर्ण का निर्माण कर दिया गया जिनका कार्य ही दूसरों को क्षति से त्राण दिलाना, यानी समाज और राष्ट्र की रक्षा हेतु युद्ध करना था| धर्मरक्षा और राष्ट्ररक्षा के लिए सभी युद्ध करते थे सिर्फ क्षत्रिय ही नहीं|
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कालान्तर में एक "सद्गुण विकृति" आ गयी और यह मान लिया गया कि युद्ध सिर्फ क्षत्रिय का ही कार्य है, अन्य वर्णों का नहीं|
>>> यह सद्गुण विकृति ही भारत के पराभव और दासता का कारण बनी| <<<
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युद्धभूमि में ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ प्रकट होता है| युद्धभूमि में ही गीता का ब्रह्मज्ञान व्यक्त होता है|
एक युद्ध जो हमारे अंतर में निरंतर चल रहा है असत्य और अन्धकार की शक्तियों से, उसमें हमें विजयी ही बनना है|
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ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ ||
वीरों का अभिनन्दन और शुभ कामनाएँ|
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Saturday, October 8, 2016
युद्ध की अपरिहार्यता
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