अल्लाह हमे रोने दो:लेखिका - जहांआरा बेगम अनुवादक - स्वामी अमृतानन्द, ओमकारेश्वर महादेव, आर. वी. देसाई मार्ग - बडौदा।
ओ अल्लाह तुम तो हमे अकेले मे चीखने दो और जोर जोर से रोने दो। कही एकान्त मे हमारा दम ही न निकल जाए। बुरके की घुटन मे लोक जीवन की चारदीवारी मे हमे इतना जी भर के रो लेने दो कि हमारी आखो मे एक भी आंसू बाकी न बचे। हमे इतना रोने दो कि उसके बाद रोने की ताकत ही न रहे। क्यो केवल एक ही अधिकार तुमने मुसलमान महिलाओं के लिए छोडा है। पूरे मुस्लिम संसार मे उलट पुलट हो रहे है, पर हम मुसलमान तो वही पुराने ढर्रे पुराने संस्कारो की बेडियो मे जकडे हुए है। पूरे संसार की नारियों के लिए मुक्ति आंदोलन चले और आज वे स्वतंत्रता के मुक्त वातावरण मे सांस ले रही है। परन्तु वाह रे हमारा भाग्य! मुस्लिम समाज की महिलाओ की मुक्ति का एक भी स्वप्न संसार के किसी कोने से नही फूटा। हमारी मुक्ति के लिए कोई भी समाज सुधारक, चिन्तक, कोई नेता व कोई भी धार्मिक व्यक्ति आगे नही आया। या अल्लाह ! कितना अदभुत है हमारा मुस्लिम समाज जिसमे कोई शरतचन्द्र पैदा नही हुआ जो हमारे आसुंओ का हिसाब चुकता कर दे। बदरूद्दीन तैयबजी, हमीद दलवई आदि प्रसिद्ध विद्वानो ने गौहत्या बंद हो इस पक्ष मे निबन्ध लिखे परन्तु हमारे लिए सहानुभूति का एक भी अक्षर हलक से नही फूटा। अब्दुल जब्बार ने हिजडो के दुख के बारे मे तो एक मोटी पुस्तक लिख डाली परन्तु हमारे लिए एक भी शब्द उनके शब्दकोष से नही फूटा। सैय्यद मुस्तफा सिराज ने तो लिख ही डाला कि हिन्दू समाज के लोग अपने लोगो के दोषो और त्रुटियो को लेकर स्वतंत्रता पूर्वक लिख सकते है परन्तु हम लोग अपने समाज के बारे मे लिखने से डरते है। हमारे विचारक भी मुस्लिम मुल्ला, मौलवियो से डरे हुए, सहमे हुए से एक शब्द भी नही कह पाते। खासतौर से एक मुस्लिम विवाह कानून को लेकर अगर कुछ ने लिखना भी शुरु कर दिया जैसे कि नरगिस सत्तार साहब की हमे आशा की एक किरण फूटती सी दिखाई तो दी पर अफसोस ! उसके वाद फिर वही घोर अंधकार, गहरी काली स्याही व एक लंबी चुप्पी। पिछले कई सालो से संसार के कई हिस्सो मे कई परिवर्तन हुए। विवाह कानून मे कई तब्दीलिया हुई कई नई वैज्ञानिक खोजो और चिन्तनो ने पुराने रूढ़ियो को छोडने को मजबूर कर दिया लेकिन मुस्लिम समाज वही पुरानी रूढीवादियो मे अटका हुआ है। लाहौर मे सहस्रो स्त्रियो महिला कानूनविदो ने जब मुस्लिम महिलाऒ के अधिकारो को लेकर जुलूस निकाला तो पुरूष पुलिस ने भयंकर लाठी चार्ज करके उसे भंग कर दिया। एक बार भारत की पार्लियामैन्ट मे मुस्लिम महिलाओ के अधिकारो को लेकर डीबेट रखी गयी। ए.डी.एम.के. पार्टी के मुस्लिम सांसदों द्वारा इस प्रश्न को उठाया गया पर मुस्लिम वोट खो देने के भय से देश की सब राजनैतिक पार्टियो को सांप सूंघ गया। सबके सब गूगे बहरे हो गए। क्या अजीब जीव है अल्लाह ? यह राजनैतिक पार्टी के नेता व कार्यकर्ता। ऐसा लगता है जैसे इन सबकी जुबान को लकवा मार गया हो।
ओ अल्लाह ! यह राजनैतिक पार्टियो के नेता और कार्यकर्ता सुल्तानो के बनाए हुए खोजीयो हिजडो से भी नीच व निकृष्ट जीव है। खोजी लोग वह होते थे जो सुल्तानो द्वारा उनकी काम वासनाओ को पूरा करने के लिए सुन्दर स्त्रियों के बीच रहते हुए भी उनका भोग नही कर सकते थे। उन सुंदर स्त्रियों को देख कर वह मजबूरी मे मन मसोस कर रह जाते थे क्योकि हरम की स्त्रियों को बुरी नजर से देखना उनकी मौत का न्यौता देने के बराबर होता था। ऐसे ही आज के नेता केवल दिखावे के लिए समाज सुधारक बनते है अन्दर से उनकी निगाहे स्त्रियो के बदन को निहारती रहती है। यदि वे मुस्लिम स्त्रियो कि उत्थान की बात भी करते है, तो केवल छलावा मात्र होता है। करके दिखाने की शक्ति उनमे नाम मात्र की भी नही होती है। इसलिए आज मुस्लिम स्त्रियो का आकुल क्रंदन चालू है। और शायद युगयुगान्तर तक रहेगा। ये राजनैतिक तुच्छ जीव ऊंची आवाज मे मधुर मधुर सुन्दर महान शब्दो मे स्वाधीनता, साम्यता व समान अधिकारो जैसे शब्दो का प्रयोग तो करते है, परन्तु वह वोटो के लालची मुस्लिम स्त्रियो के उत्थान मे एक एक भी पग नही उठाते। वाह कितनी सुन्दर- सुन्दर शब्दावली का प्रयोग करते है मानो आज ही मुस्लिम स्त्री समाज की नैया पार लगा देगे। परन्तु इनके भाग्य मे तो आंसू के दरिया मे डूबना ही लिखा है। आंसू ही उनका भाग्य है जैसे संसार का तीन हिस्सा पानी है, और एक हिस्सा पृथ्वी है ऐसा ही मुस्लिम समाज की महिलाओ का जीवन गर्दन तक आंसुओ मे डूबा है। हिम्मत तो देखिए पुरूष समाज का ८० वर्ष का शेख कांपते हुए सिर वाला डगमगाते हुए कदमो वाला घर मे ५ बीबियां होते हुए भी भारत मे रह रहा है केवल १३, १४ वर्ष की लड़की से विवाह रचाने और वह लाचार लडकी पुरुषो द्वारा संचालित समाज मे न चाहते हुए भी बूढे खूंसट के साथ अरब देश मे पहुंच जाती है। इस प्रकार की दिल दहला देने वाली घटनाओ को, आए दिन समाचार पत्रो मे पढकर मुस्लिम महिलाओ की रूह कांप जाती है पर बेचारगी पर आंसू बहाने के सिवाय उनके पास कोई चारा नही। मुस्लिम महिला की घुटन भरी जिन्दगी ऐसी खबरो को पझ-पढ कर घर के अन्धेरे कोनो मे सुबक कर रोने मे ही बीत जाती है। कोई एक भी तो उनकी नही सुनता उनकी सिसकियो भरी आवाज। न घर मे न घर के बाहर न भाई न पिता न मस्जिद न मुल्ला मौलवी न नेता न समाज सुधारक सब के सब मौन। कोई भी तो मौलवी ऐसी घटना के विरुद्ध फतवा जारी नहीं करता। उल्टा पाशविक धार्मिकता की आड मे स्त्री तो पुरुष के पांव की जूती, बच्चा पैदा करने वाली मशीन पुरुष की भोग्या ऐसी धारणाओ की बलिवेदी पर परवान हो जाती है। चार पांच सोतो के साथ जीवन कितना नारकीय बन जाता है यह तो केवल भोगने वाला ही जान सकता है। किसी मौलवी का जिहाद ऐसी कुप्रथा के विरुद्ध क्यो नही चलता उल्टा मुल्ला साहिब इसको मुता विवाह का नाम देकर अपना धार्मिक कर्मकाण्ड पूरा कर देते है..
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Saturday, October 15, 2016
अल्लाह हमे रोने दो
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