भीम राव आंबेडकर से सम्बंधित कुछ प्रमुख तथ्य ।
1. भीमा ने प्रिंसिपल को यह सूचित किया था कि गणित विषय में मैं कमजोर होने के कारण इस नवंबर 1980 की परीक्षा में नहीं बैठूँगा। इस कारण उसका एक साल व्यर्थ गया। (कालेज रिकार्ड)
2. सन् 1909 में प्रीवियस में 600अंकों में 223 अंक प्राप्त हुए,मतलब 31.90% सन् 1910 की इंटरमीडियेट परीक्षा में भीमराव की विषयानुसार अंक-सूची निम्न प्रकार से हैः—
अंग्रेजी फारसी गणित तर्कशास्त्र
कुलअंक 200 100 200 100
उत्तीर्ण होने के
लिए आवश्यक अंक 60 30 60 30
प्राप्त अंक 69 52 60 42
(एल्फिंस्टन कॉलेज रिकार्ड फाइल्स Inter 1909, Elphinstone College,BombayPersian and English)
कुल=223/600 =37.16%
3. B.A, 1913, Elphinstone College, Bombay, University of Bombay, Economics & Political Science
scored 449 marks out of 1000.means 44.90%.
इसी तरह
अम्बेडकर को मेधावी कहने वाले छुपाते हैं कि 1913 में PG करने गए तो 1917 में Ph.D. कर लेते, किन्तु 1927 में Ph.D. की डिग्री ले पाए -- तीसरी थीसिस पर !! अंग्रेजों का क़ानून भारत पर थोपा -- यही "मेधा" थी |मूर्खों को मिर्ची लगेगी तो लगे, सत्य तो सत्य ही रहेगा |अम्बेडकर अमरीका की कोलम्बिया विश्वविद्यालय 1913 में गए जहाँ उन्होंने जून 1915 में MA की अर्थशास्त्र में डिग्री ली ; उन्होंने अपनी "थीसिस" प्रस्तुत की " Ancient Indian Commerce" पर | विकिपीडिया ही बतलाता है कि उनकी दूसरी "थीसिस" 1916 ईस्वी में "National Dividend of India-A Historic and Analytical Study" पर थीसिस लिखी जिसपर केवल MA की मान्यता मिली और PhD की डिग्री 1927 में मिली !! क्या अर्थ है ?
अमरीका में PhD की डिग्री नहीं मिली तो वे 1916 में ही इंग्लैंड चले गए और बार कौंसिल में घुसने का असफल प्रयास किया एवं महाराज गायकवाड द्वारा दुबारा चार वर्षों की छात्रवृति लेने के बाद "doctoral thesis" ('The problem of the rupee: Its origin and its solution') पर लन्दन में कार्य आरम्भ किया जो उन्होंने 1921 में संपन्न किया और इस "डॉक्टरल थीसिस" पर पुनः केवल MA की डिग्री ले सके !!
1923 में अम्बेडकर को "D.Sc." (Doctor of Science) की उपाधि दी गयी जो लन्दन विश्वविद्यालय ने 1860 में देना आरम्भ किया किन्तु तेरह दशकों के बाद बन्द कर दिया | इंग्लैंड में इस डिग्री के बारे में पढ़ें :--
https://en.wikipedia.org/wiki/
Doctor_of_Science#The_United_Ki
ngdom.2C_Ireland.2C_India_and_
the_Commonwealth
1923 तक अम्बेडकर महोदय न तो कहीं से Ph.D. कर पाए थे और न ही अंतर्राष्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं में उनके शोध पत्र ही प्रकाशित हुए थे | अतः स्पष्ट है कि उनको D.Sc. की डिग्री किसी शोध कार्य के लिए नहीं बल्कि उनके "दलित" सम्बन्धी हिन्दू-विरोधी "महान" विचारों के कारण मिली जो अंग्रेजों को राजनैतिक कारणों से पसन्द आये ! उल्लेखनीय है कि उसी साल उनको लन्दन बार कौंसिल ने भी मान्यता दी, उससे पहले सात सालों तक लन्दन बार कौंसिल ने उनको लायक नहीं समझा ! लन्दन विश्वविद्यालय ने अपने पूरे इतिहास में केवल तीन व्यक्तियों को इतनी कम अवस्था में D.Sc. की डिग्री दी - अम्बेडकर तब केवल 32 वर्ष के थे, और यदि इसपर ध्यान दे कि अम्बेडकर ने Ph.D. भी नहीं की थी तो ब्रिटेन के पूरे इतिहास में बिना Ph.D. के इतनी अल्पावस्था में D.Sc. की डिग्री लेने वाले वे अकेले व्यक्ति थे ।
1927 में अमरीका की कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने उनकी 1916 ईस्वी की थीसिस पर ही उनको Ph.D. की डिग्री दे दी जिसपर 1916 में Ph.D. से इनकार करके केवल MA की डिग्री दी गयी थी | इन सारी उपाधियों की जड़ थी 1916 वाली थीसिस "National Dividend of India-A Historic and Analytical Study" जिसका "क्रान्तिकारी" राजनैतिक महत्त्व समझने में अंग्रेजों को सात साल लगे और अमरीका को 11 साल लगे जब अंगेजों ने अमरीकियों को भी अक्ल दी |
1952 ईस्वी में उसी कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की दूसरी डिग्री LL.D. दी किन्तु बिना किसी थीसिस के -- | बहुत कम लोगों को पता है कि भारत के संविधान-निर्माण में अम्बेडकर के केवल दो ही वास्तविक योगदान हैं -- अनुच्छेद 15 - 17 में छूआछूत तथा आरक्षण पर उनके मत को जुडवाने में | भारतीय संविधान का दो-तिहाई तो राऊ साहब ने लिखा जिन्होंने 1935 का गवर्नमेन्ट ऑफ़ इन्डिया एक्ट मामूली फेरबदल के साथ कॉपी-पेस्ट कर दिया -- चूँकि भारत आजाद हो चूका था, पाकिस्तान बन चुका था, रजवाड़ों की भूमिका बदल चुकी थी, अतः 1935 के एक्ट में थोड़ा फेर-बदल अनिवार्य हो गया था, अन्यथा अंग्रेजों के 1935 एक्ट को ही आजाद भारत का संविधान का आधार बनाया गया जिसमें एक तिहाई अन्यान्य अनुच्छेदों को व्यापक बहस के बाद अन्य सदस्यों ने जुड़वाये | अतः यह प्रचार कि अम्बेडकर संविधान के "निर्माता" हैं बिलकुल झूठ है और इस झूठ का आरम्भ पश्चिमी ताकतों ने अम्बेडकर को महिमामंडित करने के लिए किया जिसका प्रमाण है कोलम्बिया विश्वविद्यालय द्वारा LL.D. की मानद डिग्री का उपरोक्त कारण | तत्पश्चात 1953 ईस्वी में उन्हें हैदराबाद की ओस्मानिया विश्वविद्यालय ने भी बिना किसी थीसिस के D.Litt. की मानद उपाधि दी -- उस विश्वविद्यालय की स्थापना हैदराबाद के निज़ाम के नाम पर निजामशाही के तहत हुई थी और विश्व में सर्वप्रथम उर्दू के माध्यम से शिक्षा का शुभारम्भ उसी विश्वविद्यालय ने किया था (अब सेक्युलर लोग भी वहाँ घुस गए हैं, पहले केवल "शान्तिदूतों" का ही कब्जा था जिन्होंने भारतीय फौज के विरुद्ध 1948 में हथियारबन्द संघर्ष में रजाकारों का साथ दिया था जिनके सरगना के वकील के पुत्र हैं ओवैसी महोदय ; रजाकारों के सरगना तो सरदार पटेल द्वारा भेजी गयी भारतीय फ़ौज से हारने के बाद पाकिस्तान भाग गए, ओवैसी को छोड़ गए ।
20 सालों के झूठे प्रचार के कारण अब तो ऐसा वातावरण बन गया है कि RSS भी अम्बेडकर को वीर सावरकर और गोलवलकर के समकक्ष बिठाने में जुट गए है।
सबसे प्रमुख बात तो ये है मेरे भाइयो की ये डिग्री की जद्दोजहद उस समय बाबा साहब कर रहे थे जब लाखो लाखो भारतीयो ने अपने अंग्रेजी डिग्रीयां जला के राख़ कर दी। उपाधिया वापस कर दी।वीर सावरकर ने बैरिस्टर की डिग्री को सिर्फ इसलिए ठोकर मार दी थी की उसे ब्रिटिश महारानी के आगे घुटनों के बल झुक के लेना था।
अरविन्द घोष ने आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी अंग्रेजों के अधीन काम करना अपने स्वाभिमान के विपरीत समझा और आफिसर की पोस्ट पर लात मार दी। गोलियों और लाठियो की बरसात झेल रहे थे।
आज भी मैं बता दू भारत वर्ष में सबसे जादा डिग्री 1954 में जन्मे श्रीकांत जिजकर जी के पास है। मै यही समझता हूँ की डिग्री से कोई न तो महान बना है और न बन पायेगा। Mark Zuckerberg, Paul Allen, steave jobs, Michael Dell, Larry Ellison, Bill Gates, The Wright Brothers, Thomas Edison, Ramanujan, huxlay, alexender Fleming ये लोग बिना डिग्री के महान बने।
जय हिन्द जय भारत।
अम्बेडकर का जन्म 1891 में हुआ था और मृत्यु 1956 में तो 1980 में वो एग्जाम कैसे छोड़ दिये।
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