Friday, May 18, 2018

वीर महात्मा नाथूराम गोडसे एक नया दृष्टिकोण


आज का दिन बहुत ही पावन है क्योंकि आज के दिन 19 मई 1910 को बारामती पुणे के एक राष्ट्रभक्त संस्कारित हिन्दू परिवार में एक दिव्य बालक का जन्म हुआ , जो आगे चलकर एक सच्चा समाज सुधारक , विचारक , यशस्वी संपादक व भारत की अखण्डता के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाला महात्मा सिद्ध हुआ, उस वीर का नाम है नाथूराम गोडसे।
नाथूराम गोडसे का असली नाम रामचन्द्र विनायक गोडसे था। उनके पिता विनायक गोडसे पोस्ट ऑफिस में काम करते थे। जब विनायक गोडसे के पहले तीन पुत्र बचपन में ही चल बसे और एक पुत्री जीवित रह गई तो विनायक को आभाष हुआ कि ऐसा किसी शाप के कारण हो रहा है। विनायक गोडसे ने कुलदेवी से मन्नत मांगी कि अगर अब लडका होगा तो उसका पालन - पोषण लडकियों की तरह ही होगा। इस मन्नत के कारण रामचन्द्र को नथ पहननी पडी। बचपन से ही नाक में नथ पहनने के कारण घर वाले उन्हें नाथूराम अथवा नथूराम पुकारने लगे थे।
लडकियों की तरह पाले जाने के बावजूद नाथूराम गोडसे को शरीर बनाने, व्यायाम करने और तैरने का विशेष शौक था। नाथूराम बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक संत तथा क्रान्तिकारी विचारों के समाज सेवक और समाज सुधारक थे। जब भी गॉव में गहरे कुएँ से खोए हुए बर्तन तलाशने होते या किसी बिमार को शीघ्र डॉक्टर के पास पहुँचाना होता तो नाथूराम को याद किया जाता। नाथूराम गोडसे ब्रह्मण - भंगी को भेद बुद्धि से देखने के पक्ष में नही थे। वह छुत - अछुत, जाति, पंथ, वर्ग, रंग भेद आदि कुरूतियों को मानवता के विरूद्ध घोर अन्याय, पाप और अत्याचार मानते थे तथा इसके विरूद्ध कार्य करते थे, इसी कारण से उनका कई बार अपने परिवार वालों से झगडा भी हो जाता था।
बचपन में नाथूराम गोडसे अपनी कुलदेवी की मूर्ति के सामने बैठकर तांबे के श्रीयन्त्र को देखते हुए एकाग्रचित होते तो वह ध्यान की उच्च अवस्था में पहुँच जाते थे और इस अवस्था में ऐसे संस्कृत श्लोकों का पाठ करते थे जो उन्होंने कभी पढें भी नही। इस अवस्था में वह घर वालों के प्रश्नों के उत्तर भी देते थे। लेकिन सोलह वर्ष की आयु के होते ही नाथूराम ने ध्यान - समाधि के दिव्य आनन्द को भी राष्ट्र - धर्म के लिए न्यौछावर कर दिया और परिवार जनों के प्रश्नों के उत्तर देना बन्द कर दिया।
नाथूराम गोडसे को हिन्दू धर्म - संस्कृति से विशेष स्नेह था। वह बाबू पैदा करने वाली मैकालेवादी शिक्षा प्रणाली व अंग्रेजी - उर्दु भाषा को भारत के लिए हलाहल विष के समान घातक मानते थे तथा संस्कार व विज्ञान के समुचित समन्वय पर आधारित मनुष्य बनाने वाली गुरूकुल शिक्षा प्रणाली व हिन्दी भाषा को भारत के लिए आदर्श मानते थे।
पुणे से अपना क्रान्तिकारी विचारों का " हिन्दू राष्ट्र " समाचार पत्र निकाल कर उन्होंने महाराष्ट्र की जनता में राष्ट्रभक्ति की भावना का प्रबल संचार कर दिया। जब हैदराबाद के निजाम ने अरब साम्राज्यवादी मानसिकता के अनुसार हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया था तब आर्य समाज के आह्वान पर वीर महात्मा श्रीनाथूरामजी गोडसे के नेतृत्व में आन्दोलनकारियो का पहला दल हैदराबाद गया था और उन्ही के आन्दोलन के कारण हैदराबाद के निजाम को जजिया कर वापिस लेना पडा था।
गांधी जी अपने सामने किसी चुनौती को स्वीकार न कर पाते थे और वह उन्हें अपने रास्ते से हटाने का पूरा प्रयास करते थे। वह चाहे चौरा - चौरी का कांड हो, सांडर्स की हत्या हो, भगत सिंह की फाँसी हो, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का दिल्ली चलो आन्दोलन हो या रॉयल इंडियन नेवी का मुक्ति समर। गांधी जी वीरोचित सशस्त्र क्रान्ति करने वालो की हमेशा अहिंसा की ढाल लेकर आलोचना किया करते थे और चाहते थे कि ब्रिटिस कानून के अनुसार उन्हें कडी से कडी सजा मिले। अहिंसा के मसीहा गांधी जी ने अफ्रीका से लौटने पर भारत भ्रमण किया और प्रथम विश्वयुद्ध ( 1914 से 1918 ) में जर्मनो की हत्या के लिए अंग्रेजी सरकार की सेना में भारतीय युवाओं को भर्ती कराया, तो क्या वह हिंसा इसलिए नहीं थी कि जर्मनो के संहार के लिए वे सैनिक उन्होंने भर्ती कराये थे !
14 - 15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था कि गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन कराया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही कहा था कि देश का बटवारा उनकी लाश पर होगा।
नाथूरामजी गोडसे कतई गांधीजी के विरोधी नहीं थे, लेकिन जब गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों के कारण हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों की प्रकाष्ठा चरम पर पहुँच गयी, उर्दू को हिन्दुस्तानी के नाम से भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का कुचक्र रचा जाने लगा, विश्व की सबसे भयानक त्रासदी साम्प्रदायिक आधार पर भारत का विभाजन करा दिया गया, सतलुज नदी का जल पाकिस्तान को देना और 55 करोड रूपये को भी पाकिस्तान को दिलाने के लिए किया गया गांधी का आमरन अनशन जिसने गोडसे को गांधी का वध करने के लिए मजबूर कर दिया और 30 जनवरी 1948 को गोडसे ने दिल्ली में गांधी का वध कर दिया।
गोडसे ने गांधी वध के 150 कारण न्यायालय के सामने बताये थे , जिन्हें " गांधी वध क्यों " पुस्तक में पढा जा सकता है । एक व्यक्ति की हत्या के अपराध में उन्हें व उनके मित्र नारायण आपटेजी को मृत्युदण्ड दिया गया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया और 15 नवम्बर 1948 को अंबाला ( हरियाणा ) की जेल में वन्दे मातरम् का उद्घोष कर अखण्ड भारत का स्वप्न देखते हुए फाँसी का फंदा चुम कर आत्मबलिदान दे दिया।
नाथूराम गोडसे ने कहा था कि " मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धू नदी में ही उस समय प्रवाहित करना जब सिन्धू नदी एक स्वतंत्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जाये, कितनी भी पीढियाँ जन्म ले, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना । " आज भी गोडसे का अस्थिकलश पुणे में उनके निवास पर उनकी अंतिम इच्छा पूरी होने की प्रतिक्षा में रखा हुआ है।
वन्दे मातरम्
जय अखण्ड भारत।
- विश्वजीत सिंह अनंत
 राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत स्वाभिमानदल

स्वतंत्र भारत में औद्योगिक क्रांति के समर्थक वीर नाथूराम गोडसे

वीर नाथूराम गोडसे एक विचारक , समाज सुधारक , हिन्दूराष्ट्र समाचार पत्र के यशस्वी संपादक एवं अखण्ड भारत के स्वप्नद्रष्टा होने के साथ - साथ स्वतंत्र भारत में औद्योगिक क्रांति के समर्थक भी थे । यह तथ्य उनके द्वारा अप्पा को लिखे गये पत्रों से सिद्ध होता है । प्रस्तुत है वीर नाथूराम गोडसे जी की भतीजी श्रद्धेया हिमानी सावरकर जी ( गोपाल गोडसे जी की पुत्री व वीर सावरकर जी की पुत्रवधु तथा हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्षा , जिन्होंने हम सम्मानपूर्वक ताई जी कहते है । ) से प्राप्त वह ऐतिहासिक पत्र -
प्रिय अप्पा ,
कल आपका पत्र मिला उसमें कारखाने की हालत के बारे में कुछ जानकारी हुई । और कारखाने की संभावित वृद्धि को देखकर संतोष हुआ ।
आज - कल सरकार की यह नीति दिखाई देती है कि वह यंत्र आधारित धंधों को उत्तेजन देना चाहती है । और अगर स्वतंत्र भारत को सचमुच ही सम्पन्न करना है तो उसके लिए एक ही मार्ग है । और वह यह कि यंत्र प्रधान व्यवसायों का पोषण और उनकी वृद्धि करना । लेकिन विशेष बात यह है कि चरखा युग के अनेक लेप जिन पर चढे हुये है ऐसे नेता ही यंत्र प्रधान व्यवसायों की प्रशंशा करने लगे है ।
स्वतंत्र भारत में इन व्यवसायों के क्षेत्र को निर्भयता का स्थान प्राप्त होना बड़ी मात्रा में संभव है यह जरूर देखा जायेगा कि विदेशी चीजों की स्पर्धा अपने व्यवसायों को मारक न हो । अब इन व्यवसायों को धोखा एक ही बात है और वह यह कि श्रमिक लोगों को दायित्व शून्य रहने का अवसर देना । श्रमिक लोगों को किसी भी तरह की हानि न पहुँचाना और इन व्यवसाय केन्द्रों की वृद्धि करना यही नीति हमारे राष्ट्र के लिए हित कारक सिद्ध होने वाली है । श्रमिक और उद्योगपति इन दोनों में सामंजस्य पैदा करने की नीति का अवलम्ब ज्यादा सुसंबधता से करना आवश्यक है । हां लेकिन यह बात इन व्यवसायों को चलाने वालों के सोचने की नहीं है । उसके लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की राष्ट्र की सम्पत्ति के संवर्धन की दृष्टि से श्रमिक और उद्योगपति इन वर्गो के बीच सौहाद्र का निर्माण करने की ओर यत्न होना चाहिये ।
आपका
नथुराम
दि. 27 - 12 - 1948

अमर बलिदानी नाथूराम गोडसे जवाहर लाल नेहरू की इस्लामप्रस्त नीतियों के ध्रुव विरोधी थे , लेकिन जब दिनांक 25 जनवरी 1949 के अंग्रेजी समाचार पत्र States man में The Central Advisory Council of Industry के अधिवेशन में प्रथम दिन का वृत्तांत पढ़ा तो उन्होंने अपने ध्रुव विरोधी नेहरू की औद्योगिकरण की नीतियों का पूर्ण समर्थन किया । यह बात वीर गोडसे ने अप्पा को दूसरे पत्र में लिखी । प्रस्तुत है उस पत्र का संक्षित्त अंश -
... प्रथम दिन का वृत्तांत मैंने पढ़ा डॉक्टर श्यामाप्रसाद अध्यक्ष थे और उदघाटन नेहरूजी ने किया था । ... नेहरूजी का एक ही भाषण मुझे बहुत ही अच्छा लगा । इस पत्र में यह बात लिखने की यह वजह है कि इससे यह विदित हुआ कि सरकार को इसकी पूरी जानकारी हुई कि उद्योग - धंधे और उत्पादन इनकी ओर बहुत ही सावधान होना परमावश्यक है । अपने राष्ट्र के कोने - कोने को आधुनिक विज्ञान की सहायता से प्रकाशित करना यही एक चीज है जिसने भारत का बल और सौख्य बढेगा । यदि हिन्दुस्थान की खेती यंत्रों की सहायता से की गयी तो इस सुजलां सुफलां राष्ट्रभूमि को पर्याप्त धान्य की पैदाइश होगी बल्कि यहाँ से बाहर अनाज भेजा जा सकेगा । भारतीयों के रहन - सहन और आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए यहाँ का सब उत्पादन यंत्र - तंत्र से किया जाना चाहिए । यंत्र प्रधान उत्पादन के साथ - साथ ही श्रमिक और उद्योगपतियों के सहकार्य का प्रश्न भी काफी महत्वपूर्ण है । तुम खुद एक कारखाने के उत्पादक और संचालक हो । तुम्हारा कारखाना सिर्फ आजीविका का एक साधन नहीं है इस बात को मैं पूरी तरह से जानता हूँ । आपने कारखाने के चलाने में और संवर्धन में तुम्हारी प्रेरक शक्ति राष्ट्रीय ध्येयवाद की है । यह बात मुझे और आपके जान पहचान वालों को विदित है । आपकी श्रम करने की तैयारी आपको हमेशा यश देती रहेगी इसमें मुझे शक नहीं है । अब विदेश का माल बाजार में अधिक मात्रा में आ रहा है । यहाँ का उत्पादित माल बेचने में कठिनाई होगी यह सवाल कारखानदारों के सामने खडा है । ... और हमारी सरकार स्वतंत्र भारत की होती हुई भी यही सवाल हमारे कारखानादारों के सामने बहुत दिन तक खडा रहने वाला है इसमें कोई शक नहीं ।
आपका
नथुराम
दि. 02 - 02 -1949
नाथूराम गोडसे द्वारा फाँसी लगने से 5 मिनट पूर्व दिया गया दिव्य संदेश

भारत स्वाभिमान दल परिचय
सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन भारत स्वाभिमान दल
सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए भारत स्वाभिमान दल की ग्यारह सूत्री कार्य योजना
भारत स्वाभिमान दल - समर्पण निधि योजना 

असली गुंड़े कौन- गौरक्षक V/S राजनेता

जिन्होंने गौचर भूमि को नष्ट किया ।
जिन्होंने गो सेवा आयोग को माध्यम बना गौ माँ का हक भी खाया ।
जो गौ की तस्करी में संलिप्त हैं और उसी पैसे से चुनाव लड़ते हैं और जीतकर नेता बन गए हैं ।
गौ रक्षा कानून बनाने व समान नागरिक संहिता लागू करने का आश्वासन देकर प्रधान मंत्री बनकर गौ माँ का व उसके रक्षको का उपहास उड़ाने वाले मोदी जी ! गलती आपकी नहीं उस कुर्सी की हैं।
किंतु एक बात ध्यान रखें
गौ रक्षक तब भी थे जब मुगलो का शासन था ।
गौ रक्षक तब भी थे जब अंग्रेजों का राज था
गौ रक्षक तब भी थे जब इंदिरा की सरकार थी ।
न मुगल रहे ,न अंग्रेज रहे ।
यही हाल रहा तो आप भी पदच्युत होकर किसी अँधेरी कोठरी में चले जाएंगे
किन्तु गौ रक्षक सदैव रहेंगे हमेशा कारवाँ बढ़ता रहेगा ।
असली गुंडे गौ रक्षक नही बल्कि आपकी सरकार के मंत्री व आपके ही अधिकारी व कर्मचारी हैं । जिन्होंने गौशाला में गायो को भूखी मार दिया।
थोडा गुस्सा उन पर भी दिखाया होता। आपके अनेक जैन मित्र जिनके कत्लखाने हैं देश में
यह बयान आपने ही दिया था ,
फिर असली गुंडे कौन ? थोडा गुस्सा उन पर भी दिखाया होता ।।
 मोदी जी गौरक्षकों पर क्यों भड़के -एक सच्ची कथा
मांस निर्यात में सबसिडी के तड़के से भारत नंबर वन

भारत स्वाभिमान दल संक्षिप्त परिचय 

मोदी जी आज संघ के स्वयंसेवक शर्मिंदा हैं


भगवा भी शर्मिंदा है, मायूस तिरंगा झंडा है ।
मोदी जी की नजरों मे, गौभक्त बेचारा गुंडा है ।
गौ माता की रक्षा खातिर, भक्त रात भर जागे है ।
गौभक्तो की दहशत से, सब गौ हत्यारे भागे है ।
गौ माता की जय हो का, जो हर दिन नारा देते है ।
अपने बच्चो का हक मारकर गौ को चारा देते है ।
प्रधानमंत्री हमें बता दो,,,,,,,, खून हमारा खौला है ।
किसको खुश करने की खातिर, उनको गुंडा बोला है।
गौभक्त यदि गुंडे होते, ठंडा हथियार नही होता ।
गौ माता की गर्दन पर चाकू से वार नही होता ।
गौभक्त यदि गुंडे होते, तो छक्के छुड़ा दिए होते ।
भारत भर के सलाॅटर हाऊस, बम से उड़ा दिए होते ।
गौभक्त यदि गुंडे होते, तुम मुँह को खोल नही पाते ।
कसम बाँसुरी वाले की, तुम इतना बोल नही पाते ।
दुनिया भर के झंडो पर, ये जग भी भाग्य विधाता होती ।
सब देशों के अंदर गाय, सकल विश्व की माता होती ।
सबसे ऊँची कुर्सी पर सब खुल्ला खुल्ला बोलोगे ।
कल देशभक्त को आतंकी, संतों को दल्ला बोलोगे ।
तुमको जो लगने वाला, वो पाप दिखाई देता है ।
राष्ट्रवाद के चेहरे मे अब साँप दिखाई देता है ।
एक अरब की उम्मीदो ने, तुमको वहाँ बिठाया था ।
सारे देश के गौभक्तो ने मिलकर जोर लगाया था ।
गाँव गाँव और नगर नगर, वो हर कूचे मे घूमे थे ।
सरकार तुम्हारी बनी देखकर, सभी खुशी से झूमे थे ।
गौ माता के हत्यारे,,, संसद से जाने वाले है ।
हमको लगता था गौ के अच्छे दिन आने वाले है ।
हिन्दू ताकत जुड़ी हुई थी, मोदी आज बिखेर दिया ।
भारतवर्ष की उम्मीदो पर,,,,, तुमने पानी फेर दिया ।
अभी समय है, माफी माँग लो, वक्त नही बर्बाद करो ।
थोड़ा सा गंगाजल पी लो, कृष्ण-कन्हैया याद करो ।
गंगा की जलधार बुद्धि का कचरा साफ कर देती है ।
गैया माँ है बच्चो की हर गलती माफ कर देती है ।
वरना देश की गद्दी से, अब तुम्हें उतारा जायेगा ।
पटना तो तुम हार चुके, अब यू.पी. हारा जायेगा ।
साभार कवि : अमित शर्मा (ग्रेटर नोएडा)

मोदी जी गौरक्षकों पर क्यों भड़के -एक सच्ची कथा
मांस निर्यात में सबसिडी के तड़के से भारत नंबर वन
गौरक्षक के लिए एक्शन और गौ-हत्यारे के लिए सब्सिडी? क्या यहीं हैं भाजपा की विकास नीति ?

भारत स्वाभिमान दल संक्षिप्त परिचय 

गौरक्षक के लिए एक्शन और गौ-हत्यारे के लिए सब्सिडी? क्या यहीं हैं भाजपा की विकास नीति ?

गौरक्षक के लिए एक्शन और गौ-हत्यारे के लिए सब्सिडी???
क्या यही हैं भाजपा की विकास नीति ?
हिन्दुस्थान में गौरक्षा की बात बड़े-बड़े महात्माओं, संतों, समाजसेवैियों, राजनेताओं और क्रान्तिकारियों ने की है, आगे बढ़कर समर्थन भी किया है । छत्रपत्रि शिवाजी महाराज, गुरू गोविन्द सिंह, रामसिंह कूका, गोकुल सिंह, महाराणा प्रताप, सुहेलदेव, स्वामी दयानंद सरस्वती, देवराहा बाबा, संत रविदास, मंगल पाण्डेय, चौधरी हरफूल, लाला लाजपतराय, श्यामजीकृष्ण वर्मा, मदनमोहन मालवीय, वीर सावरकर, महात्मा आनन्द स्वामी, श्रीराम शर्मा आचार्य आदि अनेक संत-महापुरुषों ने गो-संरक्षण हेतु अथक प्रयास भी किये ।
लेकिन वर्तमान में प्रधानमन्त्री मोदी ने काफी कठोर शब्दों का प्रयोग किया है गौरक्षकों के संदर्भ में । उन्होंने बिना किसी गुंजाइश के सभी गौरक्षकों को लपेट दिया, वो भी उन्हें जिन्होंने गायों को बचाने के लिए अपनी जानें दी हैं।
गौ रक्षको में से 80 - 90% लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS की पृृष्ठभूमि के है, गौ रक्षा करते हुए 200 से अधिक गौ रक्षक गौ रक्षा करते हुए मारे जा चुके है, फिर भी बिना ठोस आधार के मोदी ने 80% गौ रक्षको को गुण्ड़ा बता दिया ?
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) ने 2015 में जो डाटा दिया था, उसके अनुसार, 'आठ करोड़ भारतीय बीफ या भैंस का मांस खाते हैं। उनमें छह करोड़, 34 लाख मुसलमान, और सवा करोड़ हिंदू बीफ या बफेलो खाते हैं। एनएसएसओ के अनुसार कुल मुस्लिम आबादी का 40 प्रतिशत बीफ या बफेलो का मांस खाते हैं, उसके अलावा साढ़े छब्बीस फीसदी ईसाइयों की फुड हैबिट यही है।
पशु कल्याण के लिए सरकार ने 1962 में 28 सदस्यीय एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (एडब्ल्यूबीआई) का गठन किया था जिसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जरिये फंड भेजा जाता है। 2011-12 में एडब्ल्यूबीआई के लिए 21.7  करोड़ रुपये का आबंटन हुआ था, 2015-16 में यह राशि घटकर 7.8 करोड़ हो गई है। देश भर में चार हजार से अधिक गौशालाओं में साढ़े तीन करोड़ गौवंश हैं। एडब्ल्यूबीआई के चेयरमैन, डॉ. आर.एम. खर्ब के मुताबिक, 'एक गाय पर रोज का ख़र्चा कम से कम सौ रुपये है, मगर केंद्र सरकार से जो अनुदान राशि मिल रही है, उससे गौशालाओं में संरक्षित एक गाय के हिस्से साल में सिर्फ दो रुपये आते हैं।' यह है गाय पर राजनीति करने वाली सरकार का असली चेहरा!
इसके ठीक उलट सरकार ने देश भर के कसाईघरों को आधुनिक बनाने के वास्ते 2002 में दसवीं पंचवर्षीय योजना के तहत 5 हजार 137 करोड़ की राशि का आबंटन किया था, ताकि बीफ  एक्सपोर्ट में हम पीछे न रह जाएं। देश का दुर्भाग्य है कि कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हम हजारों करोड़ खा रहे हैं, मगर पशुओं के संरक्षण के वास्ते सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।
मोदी_सरकार आने के बाद पहला बजट में पास किया गया जिसमे कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की जाती है ।
2014 में  4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ एक्सपोर्ट कर दुनिया में नंबर वन बन गया।
गाय के नाम पर वोट पाने वाली सरकार गाय के लिए क्या कर ही है ये उपर्युक्त आँकड़े से स्पष्ट है । हजारों कसाई लाखों गायों को हर साल काट रहे हैं उन्हें गुंडा नहीं बोला गया । सरकार को एक सर्वे करवाकर यह पता लगाना चाहिए कि कौन सी ‘दुकानें' ऐसी हैं जो गौरक्षा के नाम पर गाय का मांस बेच रही हैं।
भाजपा शासित राज्यों में अब गौ रक्षकों पर लगाम कसा जाएगा।
पार्टी अध्यक्ष अमित शाह 23 अगस्त को राज्य संगठन और 27 अगस्त को पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ होने वाली बैठक में इस मामले पर गंभीर विचार-विमर्श करैंगे।
भाजपा का कहना है कि गोरक्षा के नाम पर विभिन्न राज्यों में हुई घटनाओं में हिंदू महासभा, शिवसेना सहित कई ऐसे संगठनों के नाम सामने आए है ।
गौरक्षा पर पीएम के बयान से गौरक्षक और संत समाज नाराज है। काशी सुमेरु पीठ के शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रांनद सरस्वती जी ने कहा, 'क्यों प्रधानमंत्री नहीं देख सकते कि दिल्ली के पाँच सितारा होटलों में गाय का मांस बिक रहा है? पंजाब में गाय के स्तनों में हवा और दूध ठूंसा जा रहा है, क्या प्रधानमंत्री को यह नहीं दिखता ? एक तरफ, उनकी अंतरात्मा कहती है कि गौशालाओं को बंद नहीं किया जाएगा और अब प्रधानमंत्री कहते हैं कि गौरक्षा के नाम पर चल रही दुकानों को बंद किया जाना चाहिए। यह गायों का देश है और उनकी रक्षा होनी ही चाहिए। प्रधानमंत्री का बयान आपत्तिजनक है और गायों की हत्या को बढ़ावा देता है। गौरक्षा करनेवाले दुकानें नहीं चलाते। वे गायों की रक्षा के लिए अपनी जान तक बलिदान कर देते हैं।'
हिंदू महासभा के स्वामी चक्रपाणि ने कहा कि'पीएम ने किस आधार पर 80 फीसदी गौरक्षकों को गुंडा करार दिया है। इसके लिए वो पीएम को लीगल नोटिस भेजेंगे।' वहीं हिंदू महासभा के राष्ट्रीय प्रेसीडेंट चंद्रप्रकाश कौशिक ने कहा कि 'नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के काबिल ही नहीं है। वह वाजपेयी की तरह उसी तरह लौटेंगे जिस तरह वह 2004 में लौटे थे ।
'भारत स्वाभिमान दल' ने गौ रक्षकों की गुण्डा गर्दी को जड़ मूल से समाप्त करने के संबंध में माननीय प्रधान मंत्री महोदय जी को खुला पत्र जारी करते हुये लिखा कि-
"माननीय प्रधान मंत्री जी, आप वास्तव में गौमाता की दुर्दशा से परेशान हैं और गौहत्या के नाम पर देश भर में होने वाली राजनीति को समाप्त करना चाहते हैं तो आप केन्द्र सरकार के माध्यम से गौहत्या विरोधी केन्द्रीय कानून बनाकर देशभर में कठोरता से लागू भी करवा दीजिये, जिससे कि फ़र्ज़ी गौरक्षकों की दुकानें भी बन्द हो जायें और असली गौरक्षकों को कसाइयों से संघर्ष में अपनी जान की बाज़ी भी ना लगानी पड़े.......
और हाँ, जैसा कि आपने कहा कि गन्दगी व कूड़ा-प्लास्टिक से गायों की जान जाती है, तो गौमाता की ऐसी दुर्गति की नौबत ही ना आये, ऐसी सामाजिक सहभागिता के साथ कुछ व्यापक योजनाएँ बनाकर गौवंशों का सदुपयोग किया जाये, गौवंश को अर्थव्यवस्था से कैसे जोड़ा जाये, इस पर केन्द्रीय गौवश मन्त्रालय का गठन कर गंभीरतापूर्वक विचार कर शीघ्रतिशीघ्र प्रयास कीजिये....
कल गौमाता के प्रति चिन्ता व्यक्त करते समय यदि आप अपनी सरकार के प्रतिनिधियों, सांसदों और भाजपाइयों को भी उनके आसपास के क्षेत्रों में दुर्दशा की शिकार गौवंशों की ओर देखने का भी निर्देश देते तो ज्यादा बेहतर होता...., क्योंकि राजनेताओं, प्रशासन तथा हिन्दू समाज की शर्मनाक व दर्दनाक उपेक्षा के कारण ही आज गौमाता सड़कों पर कूड़ा-प्लास्टिक खाने या गौशालाओं में चारे और देखभाल के अभाव में भूख से तड़पने के लिये मजबूर हैं......
80%गौ रक्षक फर्जी होते है उनका डोजियर तैयार करो उनमें अधिकतर रात में असामाजिक काम करते है - आदरणीय प्रधानमन्त्री जी, नकली गौ रक्षको का डोजियर तैयार होना ही चाहिये, साथ ही 99.9% नेता भ्रष्ट होते है उनका डोजियर भी तैयार करा दीजिये, उनमें अधिकतर बलात्कारी, भ्रष्टाचारी, व्यभिचारी, गद्दार, देशद्रोही, गुंडे, माफिया और गौ मांस भक्षक होगें। कृपया नकली गौ रक्षको के साथ उनको भी जेल में डालों ।
मान्य प्रधानमन्त्री जी, गौ रक्षा कानून ही बना दो ना ताकि ये असामाजिक तत्व व फर्जी गौ रक्षक अपने आप ही समाप्त हो जाए। पर क़ानून सिर्फ किताबी न हो उस का कठोरता से पालन भी किया जाए।
'गुजरात में विश्व हिन्दू परिषद ने प्रेस नोट जारी करते लिखा कि '1 लाख से ज्यादा गायों का क़त्ल हो रही है, बावजूद कड़ा कानून नहीं है। गौरक्षक गुंडों के वेश में आते हैं, इस बयान से गौरक्षकों को सदमा लगा है। एक लाख गायों को हत्या करने वाले कसाई गुंडे नहीं और गौरक्षक गुंडे ? हिन्दू समाज को आपका यह परिवर्तन समझ में नहीं आ रहा। गायों को प्लास्टिक खाने से रोकने के लिए आपकी सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने क्या किया? अगर 80% गौरक्षक फर्जी हैं तो आपके 10 साल के शासन में आपने न्यायिक प्रक्रिया के तहत कितने लोगों को दंड दिया?'
जब सत्ता में बैठे लोग कानून और संविधान की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं और ढिलाई बरतते है तो गोरक्षक को तो आगे आना ही पड़ेगा । स्वामी अखिलेश्वरानंद ने कहा कि गोरक्षक का नाराज होना जायज है जब गाय की हत्या की जाए,उसे गाड़ियों में मारकर ले जाया जाए। अगर गाय को लेकर सख्त कानून बन जाये तो प्रदेश में इसकी स्मगलिंग को रोका जा सकता है। 
गाय के नाम पर भाजपा के लिए वोट माँगने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी के सुर में सुर मिलाया ।
भारत में प्रतिदिन लगभग 50 हजार गायें बड़ी बेरहमी से काटी जा रही हैं । 1947 में गोवंश की जहाँ 60 नस्लें थीं, वहीं आज उनकी संख्या घटकर 33 ही रह गयी है । हमारी अर्थव्यवस्था का आधार गाय है और जब तक यह बात हमारी समझ में नहीं आयेगी तबतक भारत की गरीबी मिटनेवाली नहीं है । गोमांस विक्रय जैसे जघन्य पाप के द्वारा दरिद्रता हटेगी नहीं बल्कि बढ़ती चली जायेगी । गौवध को रोकें और गोपालन कर गोमूत्ररूपी विषरहित कीटनाशक तथा दुग्ध का प्रयोग करें । गोवंश का संवर्धन कर देश को मजबूत करें । भारतीय गायों के मूत्र में पूरी दुनियाँ की गायों से ज्यादा रोगप्रतिरोधक शक्ति है । ब्राजील और मेक्सिको में भारत के गोवंशों को आदर्श माना जाता है । वे भारतीय गोवंश का आयात कर इनसे लाभान्वित हो रहे हैं । यदि कार्यपालिका,विधायिका व न्यायापालिका अपने स्तर पर गायों को संरक्षित करने की पहल करें तो लोग कानून को हाथ में लेने की कोशिश नहीं करेंगे । अतः समस्या को समाधान करने की कोशिश होनी चाहिए न कि गंदी राजनीति के द्वारा केवल सत्ता हथियाने की कोशिश । यदि यही नीति जारी रही तो जनता को जबाव देने भी आता है ?
अतः सरकार जल्द से जल्द गौ माता की रक्षा के लिए गौवंश मन्त्रालय व कानून बनायें । जिससे सारे झगडें खत्म हो जाये ।

मोदी जी गौरक्षकों पर क्यों भड़के -एक सच्ची कथा

मांस निर्यात में सबसिडी के तड़के से भारत नंबर वन

*मोदी सरकार द्वारा मांस निर्यात को दिए प्रोत्साहन के नतीजे सामने आए व 2014-15 में मीट निर्यात से होने वाली आय में 14 फीसद की बढ़ोतरी हुई।*
*बीफ (गोमांस) को लेकर भाजपा चाहे कितना भी हल्ला मचाए पर सच यह है कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद न केवल मांस का निर्यात बढ़ा है बल्कि नए बूचड़खाने खोलने व उनके आधुनिकीकरण के लिए 15 करोड़ रुपए की सबसिडी दी रही है। सबसे अहम बात तो यह है कि भले ही हिंदूवादी संगठन धार्मिक आधार पर इसका विरोध कर रहे हों पर सच्चाई यह है कि देश के सबसे बड़े चार मांस निर्यातक हिंदू हैं।*
*भाजपा सरकार ने पहले महाराष्ट्र में गणेश पूजा के दौरान मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा कर विवाद खड़ा किया था। फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गोमांस की अफवाह के बाद जिस तरह से एक परिवार पर हमला करके उसके एक सदस्य की हत्या कर दी गई उसने बिहार विधानसभा चुनाव में इसे मुद्दा बना दिया। लालू प्रसाद ने गोमांस पर जो बयानबाजी की उससे विवाद और गहरा गया है। संयोग से इसी बिहार में 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने नवादा की सभा में तत्कालीन यूपीए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे।*
*उन्होंने तब कहा था कि मनमोहन सिंह सरकार हरित क्रांति की जगह गुलाबी क्रांति (मांस उत्पादन) पर ज्यादा जोर दे रही है। वह मांस उत्पादकों को सबसिडी व टैक्स में छूट दे रही है।*
*पर जब मोदी की सरकार बनी तो उसने मांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नए बूचड़खाने स्थापित करने व पुरानों के आधुनिकीकरण के लिए अपने पहले बजट में 15 करोड़ रुपए की सबसिडी का प्रावधान कर दिया। इसके नतीजे सामने आए और पहली बार देश को बासमती चावल की तुलना में कहीं ज्यादा आय मांस के निर्यात से हुई है। उसने पिछले साल 4.8 अरब डालर की विदेशी मुद्रा अर्जित की।*
*आम धारणा यह है कि मांस का व्यापार गैरहिंदू विशेषकर मुसलमान करते हैं पर तथ्य बताते हैं कि देश के सबसे बड़े चार मांस निर्यातक हिंदू है। ये हैं – अल कबीर एक्सपोर्ट (सतीश और अतुल सभरवाल), अरेबियन एक्सपोर्ट (सुनील करन), एमकेआर फ्रोजन फूड्स (मदन एबट) व पीएमएल इंडस्ट्रीज (एएस बिंद्रा)।*
*चौंकाने वाला तथ्य यह है कि मोदीजी के गृह राज्य गुजरात में जहां एक ओर नशाबंदी लागू है, वहीं नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद मांस का उत्पादन काफी बढ़ गया। उनके सत्ता में आने के पहले गुजरात का सालाना मांस निर्यात 2001-2 में 10600 टन था जो कि 2010-11 में बढ़कर 22000 टन हो गया।*
*मोदी सरकार द्वारा मांस निर्यात को दिए प्रोत्साहन के नतीजे सामने आए व 2014-15 में मीट निर्यात से होने वाली आय में 14 फीसद की बढ़ोतरी हुई। देश ने चाहे और किसी क्षेत्र में अपना नाम भले ही न कमाया हो पर वह दुनिया का सबसे बड़ा मांस निर्यातक बन गया है। हालाकि बीफ का मतलब गोमांस होता है। भैसों का मांस भी बाहर भेजा जाता है। आमतौर पर बूढ़े बैलों को काटने की अनुमति है।*
*देश में असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल में सरकार की अनुमति लेकर व अरुणाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम व त्रिपुरा में बिना किसी अनुमति के गाय भी काटी जा सकती है। इसकी एक ही शर्त है कि उसकी उम्र 10 साल से कम नहीं होनी चाहिए।*
*वर्ष 2014-15 के दौरान भारत ने 24 लाख टन मीट निर्यात किया जो कि दुनिया में निर्यात किए जाने वाले मांस का 58.7 फीसदी हिस्सा है। विश्व के 65 देशों को किए गए इस निर्यात में सबसे ज्सादा मांस एशिया में (80 फीसद) व बाकी अफ्रीका को भेजा गया। वियतनाम तो अपने कुल मांस आयात का 45 फीसद हिस्सा भारत से मंगवाता है।*
*दूसरा नंबर ब्राजील का है जिसने 20 लाख टन निर्यात किया जबकि ऑस्ट्रेलिया 15 लाख टन निर्यात करके तीसरे नंबर पर रहा।*
*भारत के पहले नंबर पर आने की वजह यह है कि यहां का मांस सस्ता होता है क्योंकि यहां दूध न देने वाले या बूढ़े गोवंश को काट देते हैं, जबकि ब्राजील व दूसरे देशों में मांस के लिए ही जीवों को पाला जाता है जिन्हें खिलाने का खर्च काफी आ जाता है।*
*जहां दुनिया को बीफ का निर्यात कर भारत मोटा मुनाफा कमा रहा है वहीं देश में इसकी खपत में कमी आई है। इसकी जगह मुर्गों की खपत बढ़ी है। अहम बात यह है कि मुस्लिम बहुय जम्मू-कश्मीर में बीफ की बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है।*
*राजनीति से अलग धननीति:*
*राजग की सरकार ने मांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नए बूचड़खाने स्थापित करने व पुरानों के आधुनिकीकरण के लिए अपने पहले बजट में 15 करोड़ रुपए की सबसिडी का प्रावधान कर दिया। ’इसके नतीजे सामने आए और पहली बार देश को बासमती चावल की तुलना में कहीं ज्यादा आय मांस के निर्यात से हुई है। उसने पिछले साल 4.8 अरब डालर की विदेशी मुद्रा अर्जित की। ’वर्ष 2014-15 के दौरान भारत ने 24 लाख टन मीट निर्यात किया जो कि दुनिया में निर्यात किए जाने वाले मांस का 58.7 फीसद है।*
- विवेक सक्सेना
जनसक्ता समाचार पत्र से साभार
मोदी जी गौरक्षकों पर क्यों भड़के -एक सच्ची कथा

मोदी जी गौरक्षकों पर क्यों भड़के -एक सच्ची कथा





'Pink Revolution' in India'
भारत ब्रिटिश काल में ही दुनिया के मीट उद्योग का बड़ा चेहरा बन गया था परंतु स्वतंत्रता के बाद काले अंग्रेज़ो के हाथ में सत्ता आते ही यह एक पूर्ण व्यवसाय के रूप में स्थापित हुआ। वर्ष 2009 में भारत ने मीट उद्योग में मानो एक छलांग लगायी और बड़े स्तर पर कत्लखानों को परमिट बांटे गए जहां दिन में लाखों गाय/भैंस कटने लगी। इस बड़ी छलांग को 'Pink Revolution' या मीट क्रांति की उपाधि दी गयी। मात्र 5 वर्षो में ही 2014 में भारत विश्व का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक बन गया। वर्ष 2014 में भारत ने 2 मिलियन टन मीट का निर्यात किया और कुल वैश्विक उत्पाद के 20% हिस्से का मालिक बन गया। वर्ष 2014-15 में भारत ने ऊँची छलांग लगायी और 2.4 मिलियन टन बीफ का निर्यात कर विश्व में अपनी बादशाहत कायम रखी। अब भारत के पास बीफ उद्योग में 23.5% की कुल साझेदारी हो गयी। यदि आंकड़ो पर ध्यान दे तो साल 2009 से लेकर वर्ष 2015 तक प्रति वर्ष बीफ निर्यात में 14% की वृद्धि दर्ज हुई है। यही समय था जब भारत के बुद्धिजीवी संगठित हुए और गौ रक्षा हेतु अनेकों संगठनों ने कमर कसी जिसमें विश्व हिन्दू परिषद/बजरंग दल का सबसे प्रमुख योगदान रहा। निडर गौरक्षकों की महनत रंग लायी और पूरे भारत वर्ष में 2015-16 में प्रति दिन के हिसाब से औसतन 60 हज़ार गौवंश को बचाया गया। भारत की बीफ इंडस्ट्री पर यह सबसे बड़ा हमला था। 2014-15 में जहां भारत 2.4 मिलियन टन बीफ निर्यात कर रहा था वही 2015-16 में यह निर्यात घट कर 2 मिलियन टन से भी नीचे आ गया। भारत को पछाड़ ऑस्ट्रेलिया विश्व का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक बन गया। गौरक्षो के चलते बीफ निर्यातकों को अरबों रूपये का घाटा झेलना पड़ा। यह वही व्यापारी समूह है जो सरकार को मोटी रिश्वत देता है।
क्या है बीफ का धंदा, एक नज़र -
भारत में एक स्वस्थ गौवंश से औसतन 714 पौंड बीफ निकलता है जो लगभग 314 किलो हुआ। कलकत्ता की मंडी में गौमांस 122 रूपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध है तो समझे की यदि एक स्वस्थ गाय को काटा जाये तो उससे 38327 रूपये का मांस मिलेगा। यह वही गाय/गौवंश है जिसे कसाई 18-20 हज़ार में खरीदते है। यदि मोटा-मोटा समझे तो प्रति गाय के कटान से इन्हें 20 हज़ार रूपये का फायदा होता है। आपको सुनकर झटका लगेगा कि कलकत्ता की बीफ मंडी में 122 रूपये की दर से बिकने वाला मीट जब अमेरिका पहुँचता है तो उसकी कीमत 122 रूपये से बढ़ कर लगभग 4 डॉलर यानी 300 रूपये हो जाती है। अथार्त एक गाय जो भारत में कसाई ने मात्र 18-20 हज़ार रूपये में खरीद कर काटी उसकी कीमत अमेरिका पहुँचते ही 94200 रूपये हो जाती है। वैसे बताने की आवश्यकता नहीं की बीफ निर्यात में भारत के सबसे बड़े उद्योग घराने एवम् राजनेता ही है जिन्होंने अपनी ऊँची पहुँच के चलते बीफ निर्यात के परमिट हासिल किये है।
वर्ष 2023 में भारत की आधी जनता को दूध नहीं होगा नसीब - यदि इसी दर से बीफ एक्सपोर्ट बढ़ता रहा तो अगले सात साल में ही भारत के लगभग 40% दुधारी पशु कम हो जायेगे और भारत में दूध नसीब होना केवल अमीरों के भाग्य में ही होगा।
भारत में गौ संरक्षण कानून-
भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में स्पष्ठ रूप से सरकार को गौवंश के संरक्षण हेतु कठोरता से निर्देशित किया गया है। इसका बाद भी मात्र 25 राज्यो ने ही गौरक्षा कानून बनाये। भारत के 29 राज्यो में से 10 राज्यों में गौकशी वैध है, उत्तरपूर्व के 7 राज्य, बंगाल, तमिल नाडु एवम् असम। भारत में हर राज्य में गौरक्षा का अलग कानून है परंतु गौवंश को एक राज्य से दूसरे राज्य ले जाने पर जिलाधिकारी कार्यालय की मंजूरी आवश्यक है। अगर सच कहूँ तो भारत के गौरक्षा कानून में कोई कमी नहीं पर जब इसे लागू करने की बात आती है तो कहीं पुलिस बिक जाती है कहीं सरकार ऐसे में गौमाता को बचा पाना लगभग असंभव है। विवश होकर बजरंग दल जैसे हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों को यह बीड़ा उठाना पड़ता है।
अब यह मैं आपके विवेक पर छोड़ता हूँ कि क्या सच में मोदी जी के इन बीफ निर्यातक दोस्तों के गुलाबी धंदे को बचाने के लिए हम इनका विरोध बंद कर दे! हम समाज का काम करते है और यदि समाज ही सच्चे गौभक्तों को अपराधी और गुंडा कहे तो हमारा जीवन ही व्यर्थ होगा।
साभार
अमित तोमर (अधिवक्ता)
देहरादून
सभी आंकड़े USDA (United States Department of Agriculture) जो बीफ उद्योग की एक मात्र सर्वे करने वाली संस्था से लिए गए है।
(प्रार्थना - सत्ता की दलाली में इतने अंधे मत हो जाओ की धर्म भी दिखाई न दें।)