Thursday, July 21, 2016

एक चिट्ठी_सीधी_जन्नत से आयी है

एक चिट्ठी_सीधी_जन्नत से आयी है
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अब्बू और अम्मी को बुरहान का आदाब।
अब्बू!
मैं जिस 72 हूरों की ख्वाहिश में कत्लेआम मचा कर ऊपर पहुँच गया वो बहत्तर हूरें नहीं है वो हमारी चाचियाँ, आपी और फूफियाँ हैं ...
यहाँ उन पर असली वाले अरबी मुसलमानों का हक है,
हम यहाँ भी मोहाजिर ही हैं...
हमें सिर्फ़ शौचालय और कपड़े साफ करने का काम दिया गया है।
वो तो भला हो भारतीय सैनिकों का जिसने मुझे अंग विशेष में गोली मारी वर्ना मैं भी गिलमा बनरर असली वालों के नीचे रौंदा जाता, भाई जान की तरह।
अब्बू!
आप जो मूर्खता कर रहे हैं ये कहकर की "मेरा बेटा इस्लाम के रास्ते पर शहीद हुआ है
"ये अब बंद कीजिए।
मेरे जैसा जिहादी जब भारतीय सैनिकों के बीच घिर जाता है तो सलवार में पेशाब निकल आता है अब्बू।
...यहाँ आकर यह अहसास हो रहा है...
भारत ही एकलौता देश है जहाँ हमें इज्जत मिलती है वरना बाकी देशों में जाकर देख लीजिए...
चीन रमजान में रोजा नहीं रखने देता...
अमेरिका घुसते ही सबसे पहले नंगा करता है।
...जन्नत ऊपर नहीं अब्बू नीचे है...
भारत में ...
जहाँ एक मुसलमान(कलाम) को राष्ट्रपति बनाने के लिए सांप्रदायिक राजनेता जी जान लगा देते है। कलाम के मरने पर सौ करोड़ हिन्दू रोता है।
...और हाँ अब्बू!
ये मौलवी व वामपंथी जो मेरे जैसों के मरने पर विधवा विलाप करते हैं ये सबसे बड़े धूर्त हैं...
यही मौलवी- वामपंथी साले यहाँ पर हमारे जैसों को निहुरा कर आजादी का स्वाद चखाते हैं...
सुबह बहुत दर्द होता है अब्बू।
...छोटे भाई को मजहब के नाम पर ऊपर मत भेजिएगा...
वो अभी बहुत कमसिन है।
आपका
बुरहान वानी

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