" क्या इस्लाम स्वीकार करने से मै अमर हो जाऊँगा, क्या मुझे मौत नहीं आयेगी .. ? "
यदि मरना ही है तो मैं अपने गुरु के विचारों सिद्धातों पर चलते हुये हँसते हँसते मरना पसंद करूँगा, मैं हिन्दू धर्म छोड़कर, इस्लाम स्वीकार नहीं करुँगा
यह कहना था भाई तारू सिंह जी का
सन् 1745 में जब हिन्दू धर्म रक्षक सिख वीरो को ढूँढ ढूँढ कर कत्ल किया जा रहा था और खोज खबर देने वालों को ईनाम का लालच दिया जा रहा था तब सिखों को जंगलों में शरण लेनी पड़ी ।
पेशे से किसान भाई तारू सिंह जी सिख भाईयों को छुपकर भोजन खिलाया करते थे। पर कोई उनकी मुखबिरी कर देता है जिस वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है । ज़करिया खान के दरबार में काजी द्वारा कुरान व हदीस के आदेश अनुसार उन्हें मौत की सजा सुनाई जाती है या फिर केश कटवाकर इस्लाम कबूल करने कहा जाता है
पर तारू सिंह जी प्राण देना पसंद करते हैं
उनके केश जो उन्हें प्राणो से भी अधिक प्यारे थे, उन्हें खोपड़ी (बाल के साथ खाल भी) सहित छील कर इस्लामिक नरपिशाच निकाल देते है जिससे कुछ दिनों के बाद उनकी दर्दनाक मृत्यु हो जाती है ।
आज भी पूरी दुनिया के सिख रोज अरदास में उन्हें याद करते हैं ।।
भारत स्वाभिमान दल तथा सनातन संस्कृति संघ भाई तारू सिंह जी को श्रद्धांजली अर्पित करता है
" धन्य है भाई तारू सिंह जी "
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