Friday, July 22, 2016

महाकवि निराला, मिस्टर गांधी और हिन्दी

1936 ईश्वीं की बात है । लखनऊ में कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन हो रहा था । मिस्टर गांधी, नेहरू तथा कांग्रेस के बहुत से बड़े नेता वहा उपस्थित थे । निराला जी भी उसमें उपस्थित थे । मिस्टर मोहनदास गांधी के भाषण का एक वाक्य कांटे की तरह उनके हृदय में गढ़ गया था कि ' हिन्दी जगत में कोई रविन्द्र जैसा नहीं हुआ । ' वाक्य याद आता और खून खौलने लगता । वह निडर भाव से मोहनदास गांधी के पास चले गये । अभिवादन करके छूटते ही प्रश्न पूछा -
' हिन्दी में कोई रविन्द्र जैसा नहीं हुआ, आपने कहा था । '
' कहा तो था ' मोहनदास गांधी उनका मुँह देखने लगा । निराला जी के व्यक्तित्व की छाप उस पर पड़ी ।
' अब भी आपका यही विचार है ! ' निराला जी ने प्रश्न किया ।
' हाँ, हाँ ' मोहनदास गांधी बोला - ' पर आप चाहते क्या हैं ? '
मैं जानना चाहता हूँ कि आपने हिन्दी काव्य कितना पढ़ा है । निराला जी औजस्वी वाणी में बोले ।
कुछ विशेष तो नहीं पढ़ा । मोहनदास गांधी ने डरते हुए उत्तर दिया ।
' फिर...... ? ' निराला कुछ रूक कर बोले । आपने जय शंकर प्रसाद को पढ़ा है । सुमित्रा नन्दन पंत को पढ़ा है और सूर्यकान्त निराला को पढ़ा है । मोहनदास गांधी केवल निराला जी का मुँह ताकता रहा, कुछ बोल न पाया ।
फिर आपने कैसे सोच लिये - किये कह दिया कि हिन्दी में कोई रविन्द्र जैसा नहीं हुआ ? क्यों कह दिया ? मैं सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला आपसे पूछता हूँ कि बिना पढ़े कुछ कहने का अधिकार आपको किस ने दिया ।
' मुझे क्षमा करो भाई ' मिस्टर मोहनदास भयभीत होकर निराला जी से क्षमा मांगने लगा । मिस्टर गांधी, कवि रविन्द्र नाथ टैगोर की भतीजी से प्रेम करता था और चाटुकारितावश उसने रविन्द्र की प्रशंसा की थी, पर इस अधिवेशन में महाकवि निराला के सामने उसे अपना सम्मान बचाना भारी पड़ गया ।
' क्षमा ' महाकवि निराला जी पिघल गये और मिस्टर मोहनदास गांधी को क्षमा दान कर वहां से चले आये । मिस्टर गांधी की गर्दन नीचे तथा महाकवि निराला का मस्तिष्क उँचा था ।
- विश्वजीत सिंह अनन्त

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