अहिंसा यह वेद, रामायण और महाभारत में कभी नहीं थी । हिन्दुओं के एक भी भगवान अहिंसा रूपी नपुंसकता के मार्ग पर नहीं चले । अहिंसा यह नपुंसक मार्ग है । राष्ट्र और धर्म बर्बाद करने वाली जहरीली दवा है । श्रीकृष्ण जी ने यही कहा की अधर्मी शत्रु को दया मार्ग नहीं बताना, वो जिस अवस्था में है उसी समय उसको समाप्त करो फिर वो निहत्थे क्यू न हो उसको समाप्त करो । हमारे मुर्ख हिन्दू यह कृष्ण मार्ग छोड़कर भ्रामक अहिंसा के मार्ग पर चले और बार- बार पराधीन बने । अखण्ड हिन्दुस्थान के टुकड़े इसी अहिंसा ने किए है । तो भी हिन्दू नही सुधर रहा है । अहिंसा यह विरक्त संतो के जीवन की नीव है । एक समय में सही थी लेकिन आज नहीं । शत्रु यदि हिंसक और निर्दयी रहा तो अहिंसा याने भूखे शेर के सामने बकरी । आज इस्लाम व ईसाई धर्म निर्दयी और तामसिक है । ऐसे समय अहिंसा मार्ग राष्ट्र और धर्म को नष्ट करेगा । अहिंसा मार्ग पर जो चले आज वो धर्म समाप्त होने के मार्ग पर है । आज वो समाप्त होने के कंगार पर है । अहिंसा से पराक्रम और आक्रमकता नष्ट होती है एक हिजड़े समान उसकी अवस्था होती है । वो लड़ नही सकता प्रतिकार कर नही सकता । जो देश और धर्म इस मार्ग पर चले वो नष्ट हो गये और हो रहे है या पराधीन बने । हिन्दू के हर भगवान ने अनेक "वध" किये इसलिए वो कभी भी अहिंसा के मार्ग पर चले नहीं । जो कहते हिन्दू के भगवान अहिंसा वाले थे वो पागल है उनको धर्म का ज्ञान नही है ।
-विश्वजीत सिंह अनन्त
राष्ट्रीय अध्यक्ष
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