Thursday, September 29, 2016

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा - 6

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा

प्रश्न- ज्ञान और कर्म में से किसकी साधना करें ?
उत्तर- अन्धन्तमः प्र विशन्ति येऽविद्यामुपासते |
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ विद्यायाम् रताः || यजुर्वेद 40/12
जो केवल अविद्या, अर्थात केवल भौतिकवादी कर्म में लगे रहते हैं वे गहरे अन्धकार में जाते हैं और जो भौतिकवादी कर्म की अवहेलना कर केवल अध्यात्म वाद में लगे रहते हैं वे उससे भी बढ़कर गहरे अन्धकार में जाते हैं | अब जो कार्य तो करता है पर उसकी लिए ज्ञान की आवश्यकता नहीं समझता वह अँधेरे में है | जो ज्ञानार्जन में तो रत रहता है पर तदनुसार कर्म नहीं करता वह कर्मविहीन ज्ञान के कारण उससे भी गहन अन्धकार में है | ज्ञान और कर्म एक दूसरे के पूरक है, अत: मनुष्यों को इन दोनों की साधना करनी चाहिए |

प्रश्न - भाग्य क्या है?
उत्तर - हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।
प्रश्न - सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
उत्तर - सत्य, सदाचार, प्रेम, शौर्य, क्षमा और संघबद्ध रहना सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, पॉपाचार, कायरता, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।
प्रश्न - चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उत्तर - इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।
प्रश्न - सच्चा प्रेम क्या है?
उत्तर - स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।
प्रश्न- तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
उत्तर - जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।
प्रश्न - आसक्ति क्या है?
उत्तर - प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।
प्रश्न - बुद्धिमान कौन है?
उत्तर - जिसके पास विवेक है।
प्रश्न - कौन हूँ मैं?
उत्तर - तुम न यह शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।
प्रश्न - जीवन का उद्देश्य क्या है?
उत्तर - जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।
प्रश्न - जन्म का कारण क्या है?
उत्तर - अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
प्रश्न - जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
उत्तर - जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
प्रश्न - वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
उत्तर - जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य
जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।
प्रश्न - जाति क्या है?
उत्तर - जो ईश्वरकृत मनुष्य, गाय, अश्व, हाथी, घोड़ा आदि जीव- जन्तु और वृक्षादि समूह है, वह सब जाति कही जाती है |
प्रश्न - तो क्या मनुष्यों में जाति नहीं होती?
उत्तर - हाँ, मनुुष्यों में जाति नहीं होती क्योंकि मनुष्य स्वयं एक जाति है, इसमें ढाई भेद अवश्य होते है- पुरूष, स्त्री और उभयलिंगी(नपुसंक या हिजड़ा) | जो मनुष्य में इनसे अधिक भेद या जाति मानते है वे अज्ञानी है |
प्रश्न - संसार में दुःख क्यों है?
उत्तर - लालच, स्वार्थ, भय, दुष्ट- अधर्मियों को कठोर दण्ड का न दिया जाना संसार के दुःख का कारण हैं।
प्रश्न - ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
उत्तर - ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।
प्रश्न - चोर कौन है?
उत्तर - इन्द्रियों के आकर्षण, जो मन को हर लेते हैं ।
प्रश्न - जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
उत्तर - जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।
प्रश्न - कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
उत्तर - यौवन, धन और जीवन।
प्रश्न - नरक क्या है?
उत्तर - इन्द्रियों की दासता नरक है।
प्रश्न - मुक्ति क्या है?
उत्तर - अनासक्ति ही मुक्ति है।
प्रश्न - दुर्भाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - अकर्मण्यता, मद और अहंकार।
प्रश्न - सौभाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - कर्मण्यता, सत्संग, विवेक और धर्म के प्रति समर्पणभाव। प्रश्न - संसार को कौन जीतता है?
उत्तर- जिसमें सत्य, कर्मनिष्ठा और श्रद्धा है।
प्रश्न - भय से मुक्ति कैसे संभव है?
उत्तर - विवेक से। प्रश्न- मुक्त कौन है?
उत्तर - जो अज्ञान से परे है।
प्रश्न - अज्ञान क्या है? उत्तर - आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।
प्रश्न- मनुष्य का साथ कौन देता है?
उत्तर - धर्म और कर्म ही मनुष्य का साथ देता है |
प्रश्न - हवा से तेज कौन चलता है?
उत्तर - मन |
प्रश्न - विदेश में साथी कौन होता है?
उत्तर - विद्या |
प्रश्न - विद्या क्या है?
उत्तर - ईश्वर से लेकर पृथ्वीपर्यन्त पदार्थों का सत्य विज्ञान प्राप्त करना तथा उनका यथायोग्य उपयोग करना विद्या है |
प्रश्न - किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
उत्तर - अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर |
प्रश्न - कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
उत्तर - अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है |
प्रश्न - सर्वोत्तम लाभ क्या है?
उत्तर - आरोग्य |
प्रश्न- मत, पंथ, सम्प्रदाय से बढ़कर संसार में और क्या है?
उत्तर - धर्म |
प्रश्न - कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
उत्तर - सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती |
प्रश्न - इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
उत्तर - प्रतिदिन हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?
प्रश्न - तीर्थ क्या है?
उत्तर - जितने विद्याभ्यास, सुविचार, ईश्वरोपासना, धर्मानुष्ठान, सत्य का संग, ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता, दुष्टों का दमन, धर्म- रक्षा, उत्तम कर्म हैं, वे सब तीर्थ कहाते हैं क्योंकि इन्हें करके जीव दुःखसागर से तर सकते हैं ।
प्रश्न - पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर - सर्वथा आलस्य छोड़ के उत्तम व्यवहारों की सिद्धि के लिए मन, शरीर, वाणी और धन से अत्यन्त उद्द्योग (परिश्रम) करने को पुरूषार्थ कहते हैं |

क्रमश: जारी.....

निवेदक: भारत स्वाभिमान दल

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा - 6

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा

प्रश्न- ज्ञान और कर्म में से किसकी साधना करें ?
उत्तर- अन्धन्तमः प्र विशन्ति येऽविद्यामुपासते |
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ विद्यायाम् रताः || यजुर्वेद 40/12
जो केवल अविद्या, अर्थात केवल भौतिकवादी कर्म में लगे रहते हैं वे गहरे अन्धकार में जाते हैं और जो भौतिकवादी कर्म की अवहेलना कर केवल अध्यात्म वाद में लगे रहते हैं वे उससे भी बढ़कर गहरे अन्धकार में जाते हैं | अब जो कार्य तो करता है पर उसकी लिए ज्ञान की आवश्यकता नहीं समझता वह अँधेरे में है | जो ज्ञानार्जन में तो रत रहता है पर तदनुसार कर्म नहीं करता वह कर्मविहीन ज्ञान के कारण उससे भी गहन अन्धकार में है | ज्ञान और कर्म एक दूसरे के पूरक है, अत: मनुष्यों को इन दोनों की साधना करनी चाहिए |

प्रश्न - भाग्य क्या है?
उत्तर - हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।
प्रश्न - सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
उत्तर - सत्य, सदाचार, प्रेम, शौर्य, क्षमा और संघबद्ध रहना सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, पॉपाचार, कायरता, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।
प्रश्न - चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उत्तर - इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।
प्रश्न - सच्चा प्रेम क्या है?
उत्तर - स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।
प्रश्न- तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
उत्तर - जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।
प्रश्न - आसक्ति क्या है?
उत्तर - प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।
प्रश्न - बुद्धिमान कौन है?
उत्तर - जिसके पास विवेक है।
प्रश्न - कौन हूँ मैं?
उत्तर - तुम न यह शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।
प्रश्न - जीवन का उद्देश्य क्या है?
उत्तर - जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।
प्रश्न - जन्म का कारण क्या है?
उत्तर - अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
प्रश्न - जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
उत्तर - जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
प्रश्न - वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
उत्तर - जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य
जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।
प्रश्न - जाति क्या है?
उत्तर - जो ईश्वरकृत मनुष्य, गाय, अश्व, हाथी, घोड़ा आदि जीव- जन्तु और वृक्षादि समूह है, वह सब जाति कही जाती है |
प्रश्न - तो क्या मनुष्यों में जाति नहीं होती?
उत्तर - हाँ, मनुुष्यों में जाति नहीं होती क्योंकि मनुष्य स्वयं एक जाति है, इसमें ढाई भेद अवश्य होते है- पुरूष, स्त्री और उभयलिंगी(नपुसंक या हिजड़ा) | जो मनुष्य में इनसे अधिक भेद या जाति मानते है वे अज्ञानी है |
प्रश्न - संसार में दुःख क्यों है?
उत्तर - लालच, स्वार्थ, भय, दुष्ट- अधर्मियों को कठोर दण्ड का न दिया जाना संसार के दुःख का कारण हैं।
प्रश्न - ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
उत्तर - ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।
प्रश्न - चोर कौन है?
उत्तर - इन्द्रियों के आकर्षण, जो मन को हर लेते हैं ।
प्रश्न - जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
उत्तर - जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।
प्रश्न - कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
उत्तर - यौवन, धन और जीवन।
प्रश्न - नरक क्या है?
उत्तर - इन्द्रियों की दासता नरक है।
प्रश्न - मुक्ति क्या है?
उत्तर - अनासक्ति ही मुक्ति है।
प्रश्न - दुर्भाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - अकर्मण्यता, मद और अहंकार।
प्रश्न - सौभाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - कर्मण्यता, सत्संग, विवेक और धर्म के प्रति समर्पणभाव। प्रश्न - संसार को कौन जीतता है?
उत्तर- जिसमें सत्य, कर्मनिष्ठा और श्रद्धा है।
प्रश्न - भय से मुक्ति कैसे संभव है?
उत्तर - विवेक से। प्रश्न- मुक्त कौन है?
उत्तर - जो अज्ञान से परे है।
प्रश्न - अज्ञान क्या है? उत्तर - आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।
प्रश्न- मनुष्य का साथ कौन देता है?
उत्तर - धर्म और कर्म ही मनुष्य का साथ देता है |
प्रश्न - हवा से तेज कौन चलता है?
उत्तर - मन |
प्रश्न - विदेश में साथी कौन होता है?
उत्तर - विद्या |
प्रश्न - विद्या क्या है?
उत्तर - ईश्वर से लेकर पृथ्वीपर्यन्त पदार्थों का सत्य विज्ञान प्राप्त करना तथा उनका यथायोग्य उपयोग करना विद्या है |
प्रश्न - किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
उत्तर - अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर |
प्रश्न - कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
उत्तर - अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है |
प्रश्न - सर्वोत्तम लाभ क्या है?
उत्तर - आरोग्य |
प्रश्न- मत, पंथ, सम्प्रदाय से बढ़कर संसार में और क्या है?
उत्तर - धर्म |
प्रश्न - कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
उत्तर - सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती |
प्रश्न - इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
उत्तर - प्रतिदिन हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?
प्रश्न - तीर्थ क्या है?
उत्तर - जितने विद्याभ्यास, सुविचार, ईश्वरोपासना, धर्मानुष्ठान, सत्य का संग, ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता, दुष्टों का दमन, धर्म- रक्षा, उत्तम कर्म हैं, वे सब तीर्थ कहाते हैं क्योंकि इन्हें करके जीव दुःखसागर से तर सकते हैं ।
प्रश्न - पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर - सर्वथा आलस्य छोड़ के उत्तम व्यवहारों की सिद्धि के लिए मन, शरीर, वाणी और धन से अत्यन्त उद्द्योग (परिश्रम) करने को पुरूषार्थ कहते हैं |

क्रमश: जारी.....

निवेदक: भारत स्वाभिमान दल

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा - 6

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा

प्रश्न- ज्ञान और कर्म में से किसकी साधना करें ?
उत्तर- अन्धन्तमः प्र विशन्ति येऽविद्यामुपासते |
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ विद्यायाम् रताः || यजुर्वेद 40/12
जो केवल अविद्या, अर्थात केवल भौतिकवादी कर्म में लगे रहते हैं वे गहरे अन्धकार में जाते हैं और जो भौतिकवादी कर्म की अवहेलना कर केवल अध्यात्म वाद में लगे रहते हैं वे उससे भी बढ़कर गहरे अन्धकार में जाते हैं | अब जो कार्य तो करता है पर उसकी लिए ज्ञान की आवश्यकता नहीं समझता वह अँधेरे में है | जो ज्ञानार्जन में तो रत रहता है पर तदनुसार कर्म नहीं करता वह कर्मविहीन ज्ञान के कारण उससे भी गहन अन्धकार में है | ज्ञान और कर्म एक दूसरे के पूरक है, अत: मनुष्यों को इन दोनों की साधना करनी चाहिए |

प्रश्न - भाग्य क्या है?
उत्तर - हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।
प्रश्न - सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
उत्तर - सत्य, सदाचार, प्रेम, शौर्य, क्षमा और संघबद्ध रहना सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, पॉपाचार, कायरता, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।
प्रश्न - चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उत्तर - इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।
प्रश्न - सच्चा प्रेम क्या है?
उत्तर - स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।
प्रश्न- तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
उत्तर - जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।
प्रश्न - आसक्ति क्या है?
उत्तर - प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।
प्रश्न - बुद्धिमान कौन है?
उत्तर - जिसके पास विवेक है।
प्रश्न - कौन हूँ मैं?
उत्तर - तुम न यह शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।
प्रश्न - जीवन का उद्देश्य क्या है?
उत्तर - जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।
प्रश्न - जन्म का कारण क्या है?
उत्तर - अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
प्रश्न - जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
उत्तर - जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
प्रश्न - वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
उत्तर - जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य
जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।
प्रश्न - जाति क्या है?
उत्तर - जो ईश्वरकृत मनुष्य, गाय, अश्व, हाथी, घोड़ा आदि जीव- जन्तु और वृक्षादि समूह है, वह सब जाति कही जाती है |
प्रश्न - तो क्या मनुष्यों में जाति नहीं होती?
उत्तर - हाँ, मनुुष्यों में जाति नहीं होती क्योंकि मनुष्य स्वयं एक जाति है, इसमें ढाई भेद अवश्य होते है- पुरूष, स्त्री और उभयलिंगी(नपुसंक या हिजड़ा) | जो मनुष्य में इनसे अधिक भेद या जाति मानते है वे अज्ञानी है |
प्रश्न - संसार में दुःख क्यों है?
उत्तर - लालच, स्वार्थ, भय, दुष्ट- अधर्मियों को कठोर दण्ड का न दिया जाना संसार के दुःख का कारण हैं।
प्रश्न - ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
उत्तर - ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।
प्रश्न - चोर कौन है?
उत्तर - इन्द्रियों के आकर्षण, जो मन को हर लेते हैं ।
प्रश्न - जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
उत्तर - जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।
प्रश्न - कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
उत्तर - यौवन, धन और जीवन।
प्रश्न - नरक क्या है?
उत्तर - इन्द्रियों की दासता नरक है।
प्रश्न - मुक्ति क्या है?
उत्तर - अनासक्ति ही मुक्ति है।
प्रश्न - दुर्भाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - अकर्मण्यता, मद और अहंकार।
प्रश्न - सौभाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - कर्मण्यता, सत्संग, विवेक और धर्म के प्रति समर्पणभाव। प्रश्न - संसार को कौन जीतता है?
उत्तर- जिसमें सत्य, कर्मनिष्ठा और श्रद्धा है।
प्रश्न - भय से मुक्ति कैसे संभव है?
उत्तर - विवेक से। प्रश्न- मुक्त कौन है?
उत्तर - जो अज्ञान से परे है।
प्रश्न - अज्ञान क्या है? उत्तर - आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।
प्रश्न- मनुष्य का साथ कौन देता है?
उत्तर - धर्म और कर्म ही मनुष्य का साथ देता है |
प्रश्न - हवा से तेज कौन चलता है?
उत्तर - मन |
प्रश्न - विदेश में साथी कौन होता है?
उत्तर - विद्या |
प्रश्न - विद्या क्या है?
उत्तर - ईश्वर से लेकर पृथ्वीपर्यन्त पदार्थों का सत्य विज्ञान प्राप्त करना तथा उनका यथायोग्य उपयोग करना विद्या है |
प्रश्न - किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
उत्तर - अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर |
प्रश्न - कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
उत्तर - अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है |
प्रश्न - सर्वोत्तम लाभ क्या है?
उत्तर - आरोग्य |
प्रश्न- मत, पंथ, सम्प्रदाय से बढ़कर संसार में और क्या है?
उत्तर - धर्म |
प्रश्न - कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
उत्तर - सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती |
प्रश्न - इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
उत्तर - प्रतिदिन हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?
प्रश्न - तीर्थ क्या है?
उत्तर - जितने विद्याभ्यास, सुविचार, ईश्वरोपासना, धर्मानुष्ठान, सत्य का संग, ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता, दुष्टों का दमन, धर्म- रक्षा, उत्तम कर्म हैं, वे सब तीर्थ कहाते हैं क्योंकि इन्हें करके जीव दुःखसागर से तर सकते हैं ।
प्रश्न - पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर - सर्वथा आलस्य छोड़ के उत्तम व्यवहारों की सिद्धि के लिए मन, शरीर, वाणी और धन से अत्यन्त उद्द्योग (परिश्रम) करने को पुरूषार्थ कहते हैं |

क्रमश: जारी.....

निवेदक: भारत स्वाभिमान दल

Wednesday, September 28, 2016

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा - 5

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा

| ज्ञानवर्धक प्रश्नोत्तरी ||
प्रश्न - क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या रुप है उसका? क्या वह स्त्री है या पुरुष?
उत्तर - कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही अध्यात्म में ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष और न उभयलिंगी।
प्रश्न - उसका स्वरूप क्या है?
उत्तर - वह सत्-चित्-आनन्द है, वह अनाकार ही सभी रूपों में अपने आप को स्वयं को व्यक्त करता है |
प्रश्न - वह अनाकार स्वयं करता क्या है?
उत्तर - वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है।
प्रश्न - यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
उत्तर - वह अजन्मा अमृत और अकारण है |
प्रश्न - भगवान कौन होता है?
उत्तर - भगवान शब्द संस्कृत के भगवत शब्द से बना है। वह व्यक्ति जो पूर्णत: मोक्ष को प्राप्त हो चुका है और जो जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर कहीं भी जन्म लेकर कुछ भी करने की क्षमता रखता है, उसे भगवान कहते है | भगवान को ईश्वरतुल्य माना गया है इसीलिए इस शब्द को ईश्वर, परमात्मा या परमेश्वर के रूप में भी उपयोग किया जाता है, लेकिन यह उचित नहीं है। जो आत्मा पांचों इंद्रियो और पंचतत्व के जाल से मुक्त हो गई है वही भगवान
कही गई है। इसी तरह जब कोई स्त्री मुक्त होती है तो उसे भगवती कहते हैं। भगवती शब्द का उपयोग माँ दुर्गा के लिए भी किया जाता है। इसे ही भगवान कहा गया है।
भगवान सन्धि विच्छेद: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ
भ = भूमि
अ = अग्नि
ग = गगन
व = वायु
न = नीर
भगवान पंच तत्वों से बना है।
भगवान्- ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य- ये छ: गुण अपनी समग्रता में जिस गण में हों उसे 'भग' कहते हैं। उसे अपने में धारण करने से वे भगवान् हैं। यह भी कि उत्पत्ति, प्रलय, प्राणियों के पूर्व व उत्तर जन्म, विद्या और अविद्या को एक साथ जानने वाले को भी भगवान कहते हैं।
प्रश्न - धर्म क्या है?
उत्तर - जीव मात्र के कल्याण भाव से सत्य पर आधारित ईश्वर की आज्ञा का यथावत पालन और पक्षपात रहित न्याय सर्वहित करना है । जो कि प्रत्यक्षादि प्रमाणों से सुपरीक्षित और वेदोक्त होने से सब मनुष्यों के लिये यही एक धर्म मानने योग्य है; वह सदा से चला आया है, उसको सनातन धर्म कहते हैं ।
प्रश्न - अधर्म क्या है?
उत्तर - जिसका स्वरुप ईश्वर की आज्ञा को छोङकर और पक्षपात सहित अन्यायी होके मत, पंथ, सम्प्रदायों में उलझकर बिना परीक्षा करके अपना ही हित करना है । जिसमें अविद्या , हठ , अभिमान, क्रूरतादि दोषयुक्त होने के कारण वेदविद्या से विरुद्ध है, इससे यह अधर्म कहलाता है, यह अधर्म सब मनुष्यों को छोङने के योग्य है |
प्रश्न- धर्म के दस लक्षण कौन- कौन से है?
उत्तर - धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ||
अर्थात धैर्य (किसी कार्य को तब तक धैर्य पूर्वक करते रहना जब तक की उसमें सफलता न मिल जाये), क्षमा (यदि किसी सज्जन, श्रेष्ठ व्यक्ति से भूलवश कोई गलती हो जाये तो उसे क्षमा करना, लेकिन जो दुष्ट-अधर्मी या पापी हो उसे किसी भी स्थिति में क्षमा न करें, ऐसे दुरात्मा को क्षमा करने वाला स्वयं दुख उठाता है), दम (बुरी इच्छाओं व दुष्टों का दमन), चोरी न करना, शौच (अन्दर बाहर की स्वच्छता), इन्द्रियों को वश मे रखना, विवेक, विद्या, सत्य और क्रोध न करना (अनावश्यक क्रोध न करें, लेकिन जब अत्याधिक आवश्यकता हो तो क्रोध अवश्य करें, यह धर्म हैं। शक्तिशाली पितामह भीष्म ने पाण्डवों द्वारा द्रोपदी को जुअे पर लगाये जाने पर भी क्रोध नहीं किया जो उनके जीवन का सबसे बड़ा पाप सिद्ध हुआ, दूसरी तरफ जटायु ने अशक्त होते हुए भी माता सीता का अपहरण करने वाले राक्षसराज रावण का प्रतिकार किया जो उनके जीवन का सबसे बड़ा पुण्य था) ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।

क्रमश: जारी.....

निवेदक: भारत स्वाभिमान दल