जो लोग इस्लाम के शिकार होकर अपना गौरव खो चुके हैं उन्हें अपना गौरव पुनः हासिल करना चाहिये। किसी के इरानी, पाकिस्तानी या अरब होने में कोई शर्म की बात नहीं है।
आज इराक को लें, और देखें कि, इसका क्या हो गया। अब अतीत में जाएँ तो आप पाएंगे कि, यह देश कभी मानव सभ्यता के शिखर पर था। हाँ, इराकियों को गर्व होना चाहिये कि वे कौन हैं। मिस्र वालों को गर्व होना चाहिये कि वे कौन हैं।
पाकिस्तान, मेरी नज़र में दुनियाँ का सबसे अजूबा देश है। सोचिये, मज़हबी अलगाववाद से प्रेरित होकर एक “सेक्युलर” देश बना दिया गया - कैसा कमीनापन है! क्या इससे बड़ी बेवकूफ़ी की कोई कल्पना भी कर सकता है? क़ायदे आज़म एक जोकर था।
करोड़ों ज़िन्दगियों की क़ीमत पर अपनी महिमा गान चाहने वाला यह अहंकारी और महत्वाकांक्षी व्यक्ति सिर्फ घृणा और तिरस्कार का ही पात्र है। पाकिस्तानी उसे “पाकिस्तान का जनक” कहते हैं। पर वह उनकी विपत्तियों का जनक है। इन तबाह हुए लोगों का इस व्यक्ति ने जितना नुकसान किया है उतना किसी ने नहीं।
(हाँ, मुहम्मद इसमें जरूर अपवाद है।)
पाकिस्तान कोई देश नहीं; एक मज़ाक है। अगर आप एक पाकिस्तानी हैं, तो आपको ऐसी चीज़ ढूंढने में परेशानी हो सकती है जिसपर आप गर्व कर सकें। पर अपने आप को एक पाकिस्तानी समझने की बजाय, अपने आप को एक भारतीय समझें।
आप वास्तव में वही हैं। आपके पूर्वज हिन्दू थे। उन्होंने विश्व की भव्यतम और सबसे समृद्ध सभ्यता को जन्म दिया था। भारतीय दर्शन आज भी मानवता के लिये प्रकाश का स्रोत है। अपने आपको इस प्रकाश में देखना आपको गौरव से भर सकता है। आपको गर्व होना चाहिये कि, आप कौन हैं, उस धरोहर पर गर्व होना चाहिये जो आपसे छीन ली गई और अपने पूर्वजों पर गर्व होना चाहिये। साथ ही, ये समझो कि, पाकिस्तान या फिर बंगलादेश -- इस्लाम नामकी बीमारी का ही एक और लक्षण है।
हमें अपनी संपत्ति का गर्व होना चाहिये न कि अपने कर्ज़ों का। पहली वस्तु हमें महानता प्रदान करेगी और दूसरी पतन और बर्बरता के गर्त में ढकेल देगी। इस्लाम पर गर्व करना मानो अपनी अज्ञानता पर गर्व करना है। यह उस फरेब, अहंकार और आत्म-प्रवंचना की ओर ले जाता है जो मुसलमानों के इतने प्रकट लक्षण हैं।
विश्व में शांति तब तक कायम नहीं हो सकती और ये लड़ाइयाँ और तबाही तब तक बंद नहीं होगी जब तक इस्लाम का समूल नाश नहीं हो जाता। और ये तबतक नहीं होगा जबतक मुसलमान अपना खोया हुआ गौरव हासिल नहीं कर लेते; अपनी राष्ट्रीय संस्कृति, धरोहर और अपने आपमें गौरव महसूस नहीं करते, और अपनी वर्तमान अज्ञानावस्था तथा सामूहिक हीनभावना से मुक्त नहीं हो जाते जो इस्लाम ने उनपर थोप दी है। सभी राष्ट्रों का आत्म सम्मान उन्हें वापस लौटा देना ही विश्वशांति की कुंजी है। ये तबतक नहीं होगा जबतक हम अपने ही लोगों से प्यार न करने लगें और इस बात पर गर्व न करने लगें कि हम कौन हैं।
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