Thursday, September 8, 2016

मदर टेरेसा - सच का गला रेता जा रहा है धीरे... धीरे...

ईसाईयों के सर्वोच्च पंथगुरू पॉप जॉन पॉल ने मदर टरेसा को संत की उपाधि दी! आप पूछेंगे किस आधार पर दी?

*आधार ये है कि मदर टरेसा ने एक बार किसी महिला के शरीर पर हाथ रखा और उस महिला का गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया तो पॉप का कहना था की मदर टरेसा मे चमत्कारिक शक्ति है इसलिए वो संत होने के लायक है !*

*अब आप ही बताए क्या ये scientific है??? की उन्होने ने किसी महिला पर हाथ रखा और उसका गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया ? इस लिए मदर टरेसा संत होने के लायक है!*

*ये 100% superstition है अंध विश्वास है ! लेकिन भारत सरकार ने इसके खिलाफ कुछ नहीं किया! अब अगर भारत के कोई साधू -संत ऐसा करे तो वो जेल के अंदर! क्योंकि वो अंध विश्वास फैला रहे है!*

*अब आप ही बताएं मदर टरेसा से बड़ा अंध विश्वास फैलाने वाला कौन होगा? अगर उसमे चमत्कारिक शक्ति होती तो उसने पॉप जॉन पॉल के ऊपर हाथ क्यों नहीं रखा? अजीब बात ये है कि pop john paul को खुद parkinson नाम की बीमारी थी! और 20 साल से थी! (इस बीमारी मे व्यकित के हाथ पैर कांपते रहते हैं!) तो उस पर हाथ रख मदर टरेसा ने उसको ठीक क्यों नहीं किया?*

*मदर टरेसा का एक मात्र उदेश्य था सेवा के नाम पर भारत को ईसाई बनाना!!*
**************************************

मदर टेरेसा के काले सच को सामने लाने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं? मारिये. तर्क  दीजिए, आंकड़े जुटाइए और सबूत  देते-देते घिस जाइए मगर आपकी सुनेगा कौन? कोपरनिकस और गैलिलियो भी जिनके सामने पृथ्वी के परिक्रमण के सुबूत देते देते घिस गए, उन्ही आकाओं और उनके अंधभक्तों से आपका सामना है. सच का गला रेतना  उन्हें अच्छी तरह आता है.

वैसे सच का गला रेतना भी एक कला है. इसे बड़ी ही खूबसूरती से अंजाम दिया जाता है.

सच का गला रेतने लिए आपको चाहिए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जैसा एक विलक्षण राजनेता, जो अपनी बेहतरीन राजनीति की बदौलत एक नया इतिहास रच सके, जिसमें भूखे हैं, गरीब हैं, लाचार हैं और फिर उनके बीच विचरती एक 'माँ' है.
[ मिशनरीज ने भारतीयों की नब्ज़ गहरे पकड़ी. वे जान गए कि भारत के लोगों को वश में करने का एक ही अमोघ मंत्र है: एक शब्द- 'माँ' !बस , फिर क्या था?.. श्रवण कुमार के 'अवतार' यानि हम लोगों को बिना सोचे-समझे  'मदर' टेरेसा के पैरों में बिछ जाने से कौन रोक सकता था?]

अस्तु , पुनः विषय पर आते हैं.

तो प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के बाद आपको चाहिए  शांति नोबेल जैसा कोई विदेशी पुरस्कार जिसके प्रति भारतीयों के मन में अंधभक्ति का भाव कूट -कूट कर भरा हो.

उसके बाद ज़रुरत होगी मीडिया की, जिसका लेंस 'मदर' की छवि को असल से करोड़ों गुणा बड़ा कर दिखाए.

फिर चाहिए प्रियंका चोपड़ा जैसी खूबसूरत बला , जिससे प्रश्न पूछा जाए - ” Who is the person living today you admire the most?” और वह 3 साल पहले गुज़र चुकी मदर टेरेसा को अपना 'जीवित आदर्श' बताए ताकि इस गलत जवाब के बावजूद आप उसे 'मिस वर्ल्ड' बनाकर मदर टेरेसा को करोड़ों भारतीय लड़कियों के आदर्श के रूप में स्थापित कर दें !!

वैसे मुझे भी कई लडकियाँ  मिलती हैं जिनका आदर्श "मदर टेरेसा..यू नो" है. क्यों है? क्योंकि  It sounds elegant. भई मैगजींस में पढ़ा है, पेज 3 पर छाए रहने वाले 'प्रोफेशनल समाज सेवियों' को देखा है ना मदर टेरेसा का नाम जपते ? बस !

"She served humanity.. you know"

"सर्विस' यानि? जिसके बदले में कुछ ना माँगा जाए, ना बेचा जाए वह सर्विस. और जिसके बदले कुछ बेचा जाए वह? बिजनस! आपकी मदर टेरेसा लोगों की 'सेवा' के बदले उन्हें ईसाई बनाती थीं. मजबूर लोगों को ईसाई बनाए बिना उनकी सेवा नहीं की जा सकती थी क्या? माने, टेरेसा जी सेवा का, रिलीजन का बिजनस करती थी."

"झूठ ! औरों के लिए इतनी हार्डशिप्स उठाकर उन्हें क्या मिल रहा था?"

मैं मुस्कुरा देता हूँ - " Heaven के ख्वाब !!!
उनका रिलीजन, कन्वर्जन के बदले स्वर्ग के सपने बेचा करता है :)  "

खैर, इस पूरी गाथा के बाद अंतिम तथ्य तो यही है कि एलिगेंट दिखने के लिए सालों पहले गुजर चुकी 'मदर' को ही अपना जीवित आदर्श बताना पड़ेगा. वर्ना आदरणीय सरसंघचालक जी की तरह 'फाँसीवादी' का तमगा मिलना तय हैं।

"मदर टेरेसा का गरीबो की सेवा करने के पीछे असल मक़सद हिंदुओ का धर्म परिवर्तन कर क्रिश्चियन बनाना था" - मोहन भागवत 23-4-2015 . . . .

"मदर टेरेसा त्याग की मुर्ति थी, वे संत थी, भारत की रत्न थी, उनका होना भारत के लिये गर्व की बात " - मोदी जी 28-8-2016 (मन की बात)

अब ये बतायें की इन दो संघीयों में कौन सा वाला झूठा है ।

सच का गला रेता जा रहा है. धीरे... धीरे...

No comments:

Post a Comment