Tuesday, September 27, 2016

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा - 2

सफल, सुरक्षित व समृद्ध जीवन हेतु धर्म शिक्षा

|| ॐ परमात्मने नम : ||
सामर्थ्यमूलं स्वातन्त्र्यं, श्रममूलं च वैभवम्। न्यायमूलं सुराज्यं स्यात्, संघमूलं महाबलम्॥
"स्वतन्त्रता सामर्थ्य पर आधारित है, वैभव परिश्रम से प्राप्त होता है, सुराज्य उसी को कहेंगे जहाँ न्याय
सुलभ हो तथा शक्ति का मूल संगठन है।"
सनातन धर्म सृष्टि के आरंभ से चला आ रहा है | सनातन धर्म के विषय में संसार के किसी भी देश में कोई मतभेद नजर नहीं आता, क्योंकि सनातन धर्म ही वैदिक विश्व राष्ट्र का धर्म रहा है | अब से लगभग 5 हजार एक सौ वर्ष पूर्ण हुये विनाशकारी विश्व महा युद्ध महाभारत में वेदज्ञ विद्वानों व वीर योद्धाओ के मारे जाने के कारण भारत का प्रभाव विश्व सत्ता पर निर्बल पड़ने लगा | तदानुपरांत विद्वानों की प्रतिष्ठा व क्षमता भी कम हो गई तो कालांतर में अनेक अवैदिक व भोगवादी मत- मतांतरों ने जन्म लिया | जिनके अमानवीय आसुरी कार्यकलापों से मानवता आज भी त्राहि- त्राहि कर रही है |
विश्व के किसी भी देश में धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए इतना दीर्घकालीन, त्यागमय और सफल संघर्ष नहीं हुआ है जितना भारत के साधु- संतों व वीर- वीरांगनाओं ने किया | विश्व की महान संस्कृतियाँ (रोम, यूनान, मिश्र, ज्रथुस्त आदि) उदित हुई काल के कपाल के कराल थपेड़ों को न सह सकने के कारण कुछ ही शताब्दियों में ध्वस्त हो गई, परंतु सनातन वैदिक हिंदू संस्कृति सहस्रों वर्षो के भीषण आघातों के पश्चात आज भी जीवित है | यही सनातन शाश्वत सत्य धर्म का प्रमाण है | इस सनातन राष्ट्र भारत ने अपने जीवन में अनेक उत्थान और पतन देखे हैं किंतु उसकी लहरों में फँस कर उसने अपने जीवन की गति कभी खोई नहीं |

पीठ शत्रु को नहीं दिखायी हिंदुओं की संतानों ने |
केसरिया ध्वज रंग दिया था रक्तापूर्ण वीरों ने ||
गिरा हुआ ध्वज रामदास-शिवा छत्रपति ने उठा लिया |
गोकुल सिंह ने इसके कारण सर भी अपना कटा लिया ||
छत्रसाल और बुन्देलों ने इसी ध्वज को अपनाया |
राणा ने भी इसके कारण सब कुछ अपना त्याग दिया ||
इससे कारण कृपाण लेकर सिक्ख वीर उठ खड़े हुए |
बंदा गुरु गोविंद सिंह जी हिंदू -शत्रु पर टूट पड़े ||
पीत छटा थी त्यागमयी, कभी हृदय से नहीं गई |
श्रेष्ठ सनातन धर्म अपना, स्मृति उसकी उत्साहमयी ||

क्रमश: जारी.....

निवेदक: भारत स्वाभिमान दल

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