क्या अमेरिका के हॉवर्ड विश्वविधालय से लेकर भारत के प्रसिद्ध आई आई टी में कोई ऐसी शिक्षा दी जाती है कि आंख पर पट्टी बांध दी जाये और उसे प्रकाश की एक भी किरण भी दिखाई ना दे, फिर भी वो सामने वाली वस्तु को पढ़ सके? है ना चौकाने वाली बात? यह चमत्कार किसी हिमालय कन्दरा में नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के गृहराज्य गुजरात के महानगर में आज साक्षात हो रहा है।
3 सप्ताह पहले हमे ये देखने का सुअवसर मिला। हमारे साथ अनेक वरिष्ठ लोग भी थे। हम सब को अहमदाबाद के हेमचन्द्र आचार्य संस्कृत गुरुकुल में विद्यार्थियों की अदभुत मेधाशक्तियों का प्रदर्शन देखने के लिये बुलाया गया था। निमंत्रण देने वालों के ऐसे दावों पहले हमे पहले यकीन नहीं हो रहा था पर वो इस बात से आश्वस्त थे की अगर हम एक बार अहमदाबाद चले जाएँ तो हमारे सारे संदेह दूर हो जाएंगे और वही हुआ। इस गुरुकुल में छोटे छोटे बच्चे आधुनिकता से दूर पारम्परिक गुरुकुल शिक्षा ले रहे हैं। इन बच्चों कि मेधा शक्ति किसी ही महंगे पब्लिक स्कूल के बच्चो की मेधा शक्ति को बहुत पीछे छोड़ चुकी है।

कुछ दिन पहले टी वी चैनलों ने एक बच्चा दिखाया था जिसने सबको हैरान कर दिया था। जिसे ‘गूगल चाइल्ड’ कहा गया था। वह 10 साल से छोटा बच्चा सेकण्ड्स में उत्तर देता था। ऐसे ज्ञान को देख कर सब हैरान थे पर किसी टी वी चैनल ने यह नहीं दिखाया कि ऐसी योग्यता उसमे किस गुरुकुल से आई।
दूसरा नमूना उस बच्चे का है जिसे दुनिया के इतिहास की कोई भी तारीख पूछो और वो सवाल खत्म होने से पहले ही बता देता है की उस तारीख को क्या दिन था। कोई आधुनिक कम्प्यूटर भी इतनी जल्दी जवाब नहीं दे पाता है।
तीसरा बच्चा गणित के 50 मुश्किल सवाल मात्र अढाई मिनट में हल कर देता है। यह विश्व रिकॉर्ड है।
यह सब बच्चे संस्कृत में ही वार्ता करते हैं, शास्त्रों को अध्ययन करते हैं और देश गाय का दूध-घी खाते हैं। प्राकृतिक जीवन जीते हुए बाजारू समान से बचकर रहते हैं। घुड़सवारी ज्योतिष, शास्त्रीय संगीत, चित्रकला आदि विषयों का इन्हें अध्यन कराया जाता है। गुरुकुल में मात्र 100 ही बच्चे हैं और उनको पढ़ाने के लिए 300 अनुभवी शिक्षक हैं। परीक्षा की कोई निर्धारित पद्दति नहीं है व बच्चों की अभिरूचि अनुसार उनका पाठयक्रम तैयार किया जाता है।
यहां से पढ़कर निकलने पर कोई डिग्री नहीं मिलती। पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे 15-16 साल के हैं और लगभग सभी सम्पन्न परिवारों से है इसलिये इन्हें नौकरी की भी चिंता नहीं है। वैसे भी आजकल डिग्री वालों को नौकरियां कहां मिल रही है। इस गुरुकुल के संस्थापक उत्तम भाई है जिन्होने ये फैसला किया है कि उन्हें योग्य संस्कारवान, मेधावी व देशभक्त युवा तैयार करने हैं जो जिस भी क्षेत्र में जाएं अपनी योगिता का लोहा मनवा दे। और यह हो भी रहा है, इन बच्चों की बहुआयामी प्रतिभाओं को देखकर लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं।
उत्तम भाई के पास भी कोई डिग्री नहीं है, उन्होंने अपना सारा ज्ञान स्वाध्याय और अनुभव से अर्जित किया है। उनका कहना कि भारत में मौजूद शिक्षा प्रणाली जो कि मेकाले की देन है, भारत को गुलाम बनाने के लिए लागू की गई थी। इसी लिए भारत गुलाम बना था और आज तक बना हुआ है। ये गुलामी की जंजीरें तब टूटेगी जब भारत का हर युवा प्राचीन गुरूकुल परंपरा से पढ़कर अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं पर गर्व करेगा तब भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा आज की तरह कंगाल नहीं रहेगा।
उत्तम भाई चुनौती देते हैं कि भारत के सबसे साधारण बच्चों को छांट लिया जाए और 10-10 की टोली बनाकर दुनिया के 10 सर्वश्रेष्ठ विद्यालय में भेज दिया जाए 10 छात्र उन्हें भी दे दिए जाएं| साल के आखिर में मुकाबला हो| अगर उत्तम भाई के गुरुकुल के बच्चे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों के विद्यार्थियों के मुकाबले कहीं गुना ज्यादा मेधावी ना हो तो उनकी गर्दन काट दी जाए| भारत सरकार को चाहिए कि वह गुलाम बनाने वाले देश के इस शब्द स्कूलों को बंद कर दे और वैदिक पद्धति से चलने वाले गुरुकुलो की स्थापना करें।
साभार – विनीत नारायण
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