Tuesday, August 23, 2016

द्वारकाधीश का रूप धरो

*योगेश्वर श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें । कुछ बेहद भद्दे सन्देश प्राप्त हुए कृष्ण भगवान को लेकर, उन संदेशों को जवाब देती मेरी ये कविता*

द्वारका के राजा सुनो , हम आज बड़े शर्मिंदा है ,
भेड़चाल की रीत देखो आज तलक भी जिन्दा है |

व्हाट्सएप्प के नाम पे देखो मची कैसी नौटंकी है ,
मजाक आपका बनता है, ये बात बड़ी कलंकी है |

दो कोड़ी के लोग यहाँ तुम्हें तड़ीपार बतलाते है ,
अनजाने में ही सही,पर कितना पाप कर जाते है|

जिनके मन में भरी हवस हो,महारास क्या जानेंगे,
कांटें भरे हो जिनके दिल ,नरम घास क्या जानेंगे |

जिनको खुद का पता नहीं, वो तेरा कैरेक्टर ढीला बोलेंगे,
जो खुद मन के काले है,वो तुझे रंगीला बोलेंगे |

कालिया नाग भी ले अवतार तुझसे तरने आते थे,
तेरे जन्म पे स्वतः ही जेल के ताले खुल जाते थे |

तूने प्रेम का बीज बोया गोकुल की हर गलियों में,
मुस्कान बिखेरी तूने कान्हा ,सृष्टि की हर कलियो में |

दुनिया का मालिक है तू ,तुझे डॉन ये कहते है,
जाने क्यों तेरे भक्त सब सुन कर भी चुप रहते है।

गोकुल की मुरली को छोड़ , द्वारकाधीश का रूप धरो ,
हुई शिशुपाल की सौ गाली पूरी, अब उसका  संहार करो |

*_कवि प्रतीक दवे रतलामी_*

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