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😄 *पाकिस्तानी जनता की करुण कहानी*
(वर्ष: ९ अंक: २५ , ०२ जनवरी,१९५६)
..............पाञ्चजन्य के पन्नों से
🗣 *एक सुशिक्षित पाकिस्तानी की जुबानी*
🕌दिनांक १४ दिसम्बर को पाकिस्तान में स्थित भारतीय हाई कमिश्नर श्री देसाई ने बम्बई में भाषण करते हुए कहा कि 'यदि हम अपनी सीमाएँ खुली छोड़ दें तो पाकिस्तान के ५०% निवासी यहाँ आने का प्रयास करेंगे।
🏵इस एक बात से आप वहाँ के बारे में जो अनुमान लगा सकें लगाएँ। एक तरफ सत्तालोलुप राजनीतिज्ञों के दाँव-पेचों का परिचय प्राप्त करने और दूसरी ओर सर्वसाधारण पाकिस्तानी जनता को वर्तमान दयनीय स्थिति की एक झलक श्री देसाई के उपर्युक्त उद्गारों द्वारा प्रात्त होने के बाद भी वहाँ की वास्तविक स्थिति की यथार्थ कल्पना भारत में बैठे-बैठे कर लेना अत्यन्त कठिन है।
🇯🇪 वास्तविकता कितनी भीषण है इसका करुणाजनक चित्र एक उच्चविद्याभूषित पाकिस्तानी परिचित के पत्र में देखा जा सकता है। पत्र का कुछ भाग यहाँ विशेष रूप से उद्धृत किया जा रहा है:-
🇮🇳 *भारत माता के यह कृतघ्न पुत्र*
*सर्वसाधारण पाकिस्तानी नागरिक को इस समय सर्वत्र गहन अंधकार प्रतीत हो रहा है,और उसकी यह भावना गलत नहीं है। काश विभाजन के पूर्व ही यदि उसने इस बात का विचार किया होता। बेकारी,अज्ञान और असीम दारिद्रय की भीषण समस्याओं से हम इस समय बुरी तरह घिरे हुए हैं,परन्तु हमारे शासक न जाने कौन सा प्रश्न हल करने में व्यस्त हैं?*
👀 *हमारी आँखों के सामने अर्थात् गरीब,अज्ञानी व असह्य पाकिस्तानी जनता की आँखों के सामने, पाकिस्तान की भूमि अमरीका और रूस के बीच होनेवाले संघर्ष की युद्धभमि बनती जा रही है और....*
😱 *इस युद्धाग्नि की आहुति होगी, पाकिस्तानी सत्ताधारियों द्वारा फैलाई गई,पैरों तले कुचली गई और भाग्य के भरोसे छोड़ी हुई आम पाकिस्तानी जनता। भारतमाता के ये कृतघ्न पुत्र जानबूझकर आत्मनाश के लिए प्रवृत्त हुए हैं। इसके लिए उसके पास उपाय भी क्या है?*
🚩भारतवासियों को पाकिस्तान की दशा पर कोई सहानभूति नहीं है,इसके विपरीत सब पाकिस्तानियों को अपने ही हाथों नष्ट होता हुआ देखकर भारतवासियों को समाधान प्राप्त होना अत्यन्त स्वाभाविक है।
💔परन्तु विभाजन और विभाजन के पश्चात से पाकिस्तानी मुसलमानों में कितना जमीन-आसमान का अन्तर आ गया है यह अन्तर प्रत्यक्ष आखों से नहीं दीख सकता और कानों से भी नहीं सुना जा सकता।
❓सीधे-साधे पूछे गए प्रश्नों के उत्तरों में भी यह अन्तर स्पष्ट नहीं होगा और सरकारी दबाव में भींगी बिल्ली बने हुए वृत्त-पत्रों की सृष्टि में भी यह अन्तर स्पष्ट रूप से नहीं दिख सकता। परन्तु यह अन्तर आँखों में दिख सकता है। भारत से आए हुए किसी हिन्दू की ओर अतृप्त नेत्रों से देखती हुई पाकिस्तानी नजरों में दीख सकती है।
⚙ उन नजरों में ऐसा लगेगा कि मानों वो कह रही हों कि हम भी कुछ वर्ष पूर्व तुम्हारी तरह ही मानव थे,आज यदि हम तुम्हारे साथ होते तो हमें भी यह रूप मिला होता। सारे जग की ओर से होने वाले तुम्हारे- मान सम्मान में हम भी साझीदार हो सकते।
⏳हमने भी तुम्हारी तरह सरेआम शाही का जुंआ उठाकर फेंक दिया होता और न्यायालय में या वृत्तातों में सरकार से किसी प्रश्न का जवाब पूछ सकने का साहस किया होता।
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