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जब गोरा पादरी कुक सागर पार भाग गया
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महर्षि दयानन्द जी महाराज की अंतिम मुम्बई यात्रा के समय विदेश से एक गोरा पादरी जोसेफ कुक वहाँ पहुंचा । इसके आगमन की पूरे भारत में चर्चा फैल गयी । पादरी ने १७ जनवरी सन १८८१ के दिन मुम्बई टाऊन हाल में धाराप्रवाह अंग्रेजी में एक प्रभावशाली व्याख्यान में यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि ईसाई मत ही विश्वभर में एक सच्चा धर्म है । इसका आविर्भाव ईश्वर से हुआ । और यही मत निकट भविष्य में पूरे विश्व में फैलेगा । अंग्रेजी पठित लोगो पर पादरी की विद्वत्ता का गहरा प्रभाव था ।
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🌹🌹 किसी साधु, सन्त, महात्मा और संस्था में पादरी को उत्तर देने की हिम्मत न हुई । वह सारे भारत को ईसाई बनाने की घोषणा कर रहा था । ऋषि दयानन्द ने १८ जनवरी को पादरी को अंग्रेजी में एक पत्र लिखवा कर भेजा । इसमें " Which religion is of divine origin " अर्थात कौनसा धर्म ईश्वरकृत है ----- इस विषय पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी । पादरी तो बीस जनवरी को ही पूना भाग गया । शास्त्रार्थ करने की चुनौती पाते ही उसका सांस फूल गया । पूना से वह सात समुद्र पार पश्चिम में भाग गया ।
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🌹🌹 अंग्रेजो के शासनकाल में इतने बड़े पादरी को सागर पार भगाने वाला महापुरुष केवल यतिराट दयानन्द स्वामी ही हुआ है । हिन्दू समाज ने कृतज्ञता का प्रकाश करते हुए महर्षि के जीवन की इस घटना की कभी चर्चा ही नहीं की ।
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Wednesday, August 24, 2016
जब गोरा पादरी कुक सागर पार भाग गया
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