पाटलिपुत्र के मंत्री आचार्य चाणक्य बहुत ही विद्वान और न्यायप्रिय व्यक्ति थे। वह एक सीधे आैर ईमानदार व्यकि् भी थे। वे इतने बडे साम्राज्य के महामंत्री होने के बावजूद छप्पर से ढकी कुटिया में रहते थे।
एक आम आदमी की तरह उनका रहन-सहन था। एक बार यूनान का राजदूत उनसे मिलने राजदरबार पहुंचा। राजनीति और कूटनीति में दक्ष चाणक्य की चर्चा सुनकर राजदूत मंत्रमुग्ध हो गया। राजदूत ने शाम को चाणक्य से मिलने का समय मांगा।
आचार्य ने कहा-'आप रात को मेरे घर आ सकते हैं।' राजदूत चाणक्य के व्यवहार से प्रसन्न हुआ। शाम को जब वह राजमहल परिसर में आमात्य निवास के बारे में पूछने लगा। तब राज प्रहरी ने बताया कि 'आचार्य चाणक्य तो नगर के बाहर रहते हैं।'
राजदूत ने सोचा शायद महामंत्री का नगर के बाहर सरोवर पर बना सुंदर महल होगा। राजदूत नगर के बाहर पहुंचा। एक नागरिक से पूछा कि चाणक्य कहां रहते हैं। एक कुटिया की ओर इशारा करते हुए नागरिक ने कहा-देखिए, वह सामने महामंत्री की कुटिया है।
राजदूत आश्चर्य चकित रह गया। उसने कुटिया में पहुंचकर चाणक्य के पांव छुए और शिकायत की-आप जैसा चतुर महामंत्री एक कुटिया में रहता है। चाणक्य ने कहा-अगर में जनता की कडी मेहनत और पसीने की कमाई से बने महलों से रहूंगा तो मेरे देश के नागरिक को कुटिया भी नसीब नहीं होगी। चाणक्य की ईमानदारी पर यूनान का राजदूत नतमस्तक हो गया।
संक्षेपः
विनम्रता में ही महानता छिपी हाेती है।
भारत स्वाभिमान दल
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