माननीय उच्च न्यायालय – इलाहाबाद का ऐतिहासिक निर्णय
माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने रिट याचिका संख्या ५६४४७ सन २००३ श्यामल रंजन मुख़र्जी बनाम निर्मल रंजन मुख़र्जी एवं अन्य के प्रकरण में अपने निर्णय दिनांक ३० अगस्त २००७ को “श्रीमद भगवद्गीता” को समस्त विश्व का धर्मशास्त्र मानते हुए राष्ट्रीय धर्मशास्त्र की मान्यता देने की संस्तुति की है । अपने निर्णय के प्रस्तर ११५ से १२३ में माननीय न्यायालय में विभिन गीता भाष्यों पर विचार करते हुए धर्म, कर्म, यज्ञ, योग आदि को परिभाषा के आधार पर इसे जाति पाति मजहब संप्रदाय देश व काल से परे मानवमात्र का धर्मशास्त्र माना जिसके माध्यम से लौकिक व परलौकिक दोनों समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है ।
अब तो केन्द्र में संघ परिवार की, भाजपा की सरकार है, अब क्यों नहीं इलाहबाद उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करके श्रीमद्भगवद् गीता को राष्ट्रीय धर्म ग्रन्थ घोषित करते !
क्या हिन्दू भावनाओं से खेलकर सत्ता का सुख हासिल करना ही संघ परिवार का एकमात्र उद्देश्य बनकर रह गया है, ज्ञातव्य हैं कि संघ के स्वयंसेवक प्रधानमन्त्री ने भाजपा गौ सेवा प्रकोष्ठ भी समाप्त करा दिया है, और संघ ने उस निर्णय को चुप चाप स्वीकार कर लिया ?
नोट:- बहुत से कुपमण्डूक यह तर्क भी दे सकते है कि फलाँ भाजपा सरकार ने गीता को पाठ्यक्रम में जोड़ा है, उन्हें यह पता होना चाहिए कि दूसरी पार्टी का शासन आने पर वो अपना निर्णय अपने विवेक से लेगी, न की तुमसे पूछकर, जिस प्रकार महारानी पद्मिनी की गौरव गाथा विस्मृति के गढ्ढे में फेंक दी गई है, वही हाल गीता का होगा । गीता राष्ट्रीय धर्म ग्रन्थ बनेगा तो सरकार किसी भी पार्टी की हो भारतीयों को गीता ज्ञान से कोई अलग नहीं कर पायेगा, अत: बहानेबाजी छोड़कर अपने वचन पुरे करने पर ध्यान दो।
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