गुंडे गौरक्षको का दर्द बया करती तथा सरकारों के ढकोसले पर मोदी जी को नसीहत देती मेरी ताजा रचना--
रचनाकार- कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग", इटावा, उ.प्र.
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पूँछ रहा जो सारी दुनिया से आतंकी परिभाषा
जिसके दिल में सिर्फ देशहित की बसती है अभिलाषा
जिसका सिर्फ नाम ही काफी सोया रुधिर जगाने को
जिसने पंक दिखाया है सत्ता में बसा, ज़माने को
वो क्यों गौरक्षक के दिल में दबी हताशा भूल गया ?
आतंकी की जाने, गुंडे की परिभाषा की भूल गया ?
नहीँ गुलाबी क्रांति बंद है चालू बूचड़खाने हैं
बतलाओ क्या मजबूरी है या फ़िर सिर्फ बहाने हैं
कामधेनु की कहाँ योजना कहाँ धेनु के पोषक हैं ?
या फ़िर सिर्फ चुनावों में गौमाता के उद्घोषक हैं ?
हैवानो की फिक्र हुई या फिक्र विपक्षी शोरो की ?
इसीलिए क्या उन्हें मिली है आज सब्सिडी जोरों की ?
दयाभाव में सबसे ज्यादा हासिल हमें महारत है
गऊ माँस की मंडी में भी सबसे आगे भारत है
इक घोड़े की टूटी टाँग देखकर सारे रोते हैं
हम अन्धों के आगे रोकर अपने दीदा खोते हैं
इसी दोहरी नीती की जब पराकाष्ठा होती है
जब इक सच्चे गौ-प्रेमी, रक्षक की आँखे रोती हैं
तब वो अपने जैसों की इक फौज खड़ी कर लेता है
कम से कम अपने ही दिल की पीडा तो हर लेता है
भरी दोपहर लपट भरी हो या सर्दी की रातें हों
तूफानों का मंजर हो या फ़िर भीषण बरसाते हों
खेल जान पर वो अपनी गौ माँ की जान बचाता है
वर्दी के लुच्चों से गुंडों की पहचान कराता है
पर हर बार नपुंसक और भ्रष्ट ये वर्दी होती है
थानों में जाकर गौतस्कर की मनमर्जी होती
सिक्कों और सिफारिश से गौभक्षक छोड़े जाते हैं
बँद आँख कर सारे नियम कायदे तोड़े जाते हैं
इसीलिए गौरक्षक को शमशीर उठानी पड़ती है
कुछ भटको के लिए हूर की टिकट कटानी पड़ती है
उनको गुंडा कहते हो तो तस्कर क्या कहलाएंगे ?
भक्षक, वहशी और जिहादी लश्कर क्या कहलाएंगे ?
गुंडे वो हैं जिनको रक्त गऊ माता का प्यारा है
गुंडा है वो जो प्रशांत पुजारी का हत्यारा है
जिसने पीकर दूध छोड़ डाला धेनू को मरने को
गुंडा वो जो पाखंडी बैठा बस बातें करने को
गौरक्षक यदि गुंडे हैं तो उनको गुंडे रहने दो
तुम ना कर पाए जो उनको तो गौरक्षा करने दो
माना बहुत भृष्ट हैं इनमें भी पर क्या मजबूरी है
ऐसे दल्लो को सुर में करने के नियम ज़रूरी हैं
अच्छे दिन की बातों में बस यूँ ना हमको भटकाओ
जितने बूचड़खाने हैं सब में ही ताला लटकाओ
अगर तुम्हें भी प्यारी कुछ कुत्तों की वोट-मलाई है
सबको गुंडा कहने में यदि तुमको लगी भलाई है
यदि जिन्ना पर चादर अडवाणी की तरह चढाओगे
ऐसी अति उत्सुकता में खुद का ही अहित कराओगे
धीरे-धीरे तुष्टिकरण की दीमक से घिर जाओगे
"देव" कहे फ़िर तुम भी सबकी नज़रों से गिर जाओगे
------ कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह "आग"
(कॉपीराइट)
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