एक आम आदमी सुबह जागने के बाद
सबसे पहले टॉयलेट जाता है, बाहर आकर साबुन से हाथ धोता है, दाँत ब्रश करता है, नहाता है, कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढता है, नाश्ता करता है, घर से काम के लिए निकल जाता है.....
बाहर निकलकर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन पकड़कर ऑफिस पहुँचता है, वहाँ पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ जूस पीता है, शाम को वापिस घर के लिए निकलता है ।
घर के रास्ते में मन्दिर को शीश झुकाता है, बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए गजरा लेता है, मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुँचता है....
*अब आप बताओ कि उसे दिन भर में कहीं कोई दलित- स्वर्ण मिला.??*
*क्या उसने दिन भर में किसी दलित- स्वर्ण पर कोई अत्याचार किया.??*
उसको जो दिन भर में मिले, वो थे
अख़बार वाला भैया,
दूध वाला भैया,
रिक्शा वाला भैया,
बस कंडक्टर,
ऑफिस के मित्र,
आंगतुक,
पान वाला भैया,
चाय वाला भैया,
टॉफी की दुकान वाला भैया,
मिठाई की दूकान वाला भैया....... .
*जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो इनमें दलित- स्वर्ण कहाँ है ?*
क्या दिन भर में उसने किसी से पूछा कि भाई, तू दलित है या सवर्ण ?
अगर तू दलित है अथवा स्वर्ण है तो मैं तेरी बस में सफ़र नहीं करूँगा, तुझसे जूस नहीं खरीदूंगा, तेरे हाथ का जूस नहीं पियूँगा, तेरी दुकान से टॉफी नहीं खरीदूंगा.....
क्या उसने साबुन, दूध, आटा, नमक, कपड़े, जूते, अखबार, टॉफी, गजरा खरीदते समय किसी से ये सवाल किया था कि ये सब बनाने और उगाने वाले दलित हैं या सवर्ण ?
आम तौर पर हम सबके साथ ऐसा ही है,
*शायद कोई विरला ही आजकल के युग में किसी की जाति पूछकर तय करता है कि फलां आदमी से कैसा व्यवहार करना है ।*
हम सबकी फ्रेंडलिस्ट में न जाने कितने दलित, कितने स्वर्ण होंगे....क्या आजतक किसी ने कभी भी उनकी पोस्ट लाइक करने से पहले, या उसपर कमेन्ट करने से पहले उनकी जाति पूछी....
क्या किसी से कभी कहा कि तुम दलित हो, या तुम स्वर्ण हो इसलिए मेरी पोस्ट पर कमेन्ट मत करो ?
*जब रोजमर्रा की जिंदगी में हमसे मिलने वाले दलित- स्वर्ण नहीं होते...*
*...तो उनमें से ही कोई मरते ही दलित- स्वर्ण कैसे हो जाता है ?*
यह पोस्ट बिना किसी बदलाव के सभी को भेजें
व सभी धर्म रक्षकों को बताऐं कि यह खेल राजनीतिक एजेंडा है ....
हम सब एक हैं
सनातन हमारा धर्म है।
मानवता हमारी जाति।
हम सब एक परमात्मा की सन्तान हैं।।
सनातन में जन्मे इंसान है।।
*जागो !*
*कब तक बंटते रहोगे??*
*कब तक दलित- स्वर्ण में बाटने वाले राक्षसों के मन्तव्य का शिकार बनोगे??*
*कब तक धर्म-से-निरपेक्ष हो चुके मन्थरा के बीजों की स्वार्थी राजनीति की भेंट चढ़ोगे??*
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