Sunday, August 7, 2016

कलमा शहादतके पढ़ने से कोई मुसलमान बन जाता ?

कलमा शहादतके पढ़ने से कोई मुसलमान बन जाता ?
मुसलमान बनते किस प्रकार उसे जानना जरुरी है, इस से पहले कोई भी कितना कलमा पढ़े या पढ़ाये,मुसलमान नही बन सकता | इसकी जो बुनियादी चीज है उसे ईमान कहते हैं | इस्लामिक मान्यता की किताब भरे पड़े हैं, इसका नाम है किताबुल ईमान | इसके 6 स्तम्भ है,अरकान हैं,पिलर हैं,भिंत है | इसे जाने बिना, अपनाये बिना, कोई मुसलमान हो, ही, नही सकता | कोई कितना चिल्लाये बोले और बके,वह बकवास ही होगा ईमानदार नहीं बन सकता| [यानि मुसलमान नही बनसकता ]
इसके 6 स्तम्भ है,अरकान हैं,पिलर हैं,भिंत है, जो इस प्रकार हैं |
1 =अल्लाह पर विश्वास करना |
2 =अल्लाह के फरिश्तों पर विश्वास करना |
3 =अल्लाह की किताबों पर विश्वास करना |
4 =अल्लाह के रसूलों पर विश्वास करना |
5 = कयामत या प्रलय के दिन पर विश्वास करना |
6 = अच्छी और बुरी किसमत का बनाने वाला अल्लाह है |
आज मैं इस्लाम के मानने वालों से पूछता हूँ क्या मात्र कलमा शहादत के पढ़ने से ही कोई मुसलमान बन जाता है ?
अगर बनजाता है तो फिर कुरान व हदीस में जो, इस्लाम का दायरा या अरकान लिखे हैं बताए हैं उसका क्या तात्पर्य ? जो ईमान का दायरा है वह क्या और कैसा है,और वह किनके लिए है? अगर सिर्फ दूसरा कलमा के उच्चारण से कोई मुसलमन बनजाता है उसका प्रमाण कहाँ और किस किताब से प्रमाणित है ? जब की कुरान में अल्लाह ने फ़रमाया,यहाँ रसूलों पर शब्द है | फिर कोई मात्र मुहम्मदको रसूलमाने तो सही क्या हैं ?जाकिर नाईक का, अथवा अल्लाह का ?
لَّيْسَ الْبِرَّ أَن تُوَلُّوا وُجُوهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَلَٰكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالْكِتَابِ وَالنَّبِيِّينَ وَآتَى الْمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَالسَّائِلِينَ وَفِي الرِّقَابِ وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَالْمُوفُونَ بِعَهْدِهِمْ إِذَا عَاهَدُوا ۖ وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ وَحِينَ الْبَأْسِ ۗ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ [٢:١٧٧]
नेकी केवल यह नहीं है कि तुम अपने मुँह पूरब और पश्चिम की ओर कर लो, बल्कि नेकी तो उसकी नेकी है जो अल्लाह अन्तिम दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाया और माल, उसके प्रति प्रेम के बावजूद नातेदारों, अनाथों, मुहताजों, मुसाफ़िरों और माँगनेवालों को दिया और गर्दनें छुड़ाने में भी, और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अपने वचन को ऐसे लोग पूरा करनेवाले है जब वचन दें; और तंगी और विशेष रूप से शारीरिक कष्टों में और लड़ाई के समय में जमनेवाले हैं, तो ऐसे ही लोग है जो सच्चे सिद्ध हुए और वही लोग डर रखनेवाले हैं | वही मुत्तकी हैं | सूरा बकर =आयत =177 =
آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مِن رَّبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ ۚ كُلٌّ آمَنَ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِّن رُّسُلِهِ ۚ وَقَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ [٢:٢٨٥]
रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (और उनका कहना यह है,) "हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।" और उनका कहना है, "हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।" सूरा = बकर =285 =
इस आयात में अल्लाह ने स्पस्ट बताया ईमान का दायरा क्या है, जिसका अर्थ है विश्वास करना सिर्फ जुबान से कोई बोले, बात नही बनेगी दिलसे मानना,और जुबान से इकरार करना होगा | और सिर्फ, मोहम्मद को रसूल मानताहूँ नही है| अल्लाह पर =रसूलों पर =फरिश्तों पर =किताबों पर = अब कीई कहे मुहम्मद अल्लाह का बाँदा और उसका रसूल है | कुरान में इसकी मान्यता ही नही है |
जाकिर नाईक दुनिया वालों को गुमराह कर रहा है, जो खुद नही जनता इस्लाम को | यही डर होने के कारण आज थ सामने नहीं आ पाया, और ना कयामत तक आ सकता है |
श्री महेन्द्रपाल आर्य जी
वैदिक प्रवक्ता

No comments:

Post a Comment